सूत्र :कूर्मनाड्यां स्थैर्यम् ॥॥3/30
सूत्र संख्या :30
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द
अर्थ : पद० - कूर्मनाडयां। स्थैयम्।
पदा० - (कूर्मनाडयां) कूर्मनाडी में संयम करने से (स्थैर्यम्) स्थिरता की प्राप्ति होती है।।
व्याख्या :
भाष्य - छाती में होनेवाली कूर्माकार नाड़ी का नाम “ कूर्मनाड़ी ” है, जब योगी संयमद्वारा उसका प्रतयक्ष कर लेता है तब उसको चित्तत्थैर्य्य तथा कायस्थैर्य्य की प्राप्ति होती हैं।।
भाव यह है कि कूर्मनाड़ी अपने विन्यास की विचित्रता से चित्त को शीघ्र पकड़ लेती है, यदि उसी के अनुसार भूमि आदि पर शरीर का विन्यास किया जाय तो शरीर भी गोह का भांति स्थिर हो जाता है, अतएव जो योगी संयमद्वज्ञरा उक्त नाड़ी का स्वरूप साक्षात्कार कर लेता है उसको चित्त तथा कायस्थैर्य्य का लाभ होता है।।
सं० - अब और विभूति कहत हैं:-