सूत्र :ध्रुवे तद्गतिज्ञानम् ॥॥3/27
सूत्र संख्या :27
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द
अर्थ : पद० - ध्रुवे । तद्रतिज्ञानम्।
पदा० - (ध्रवे) धुवनामक तारे में संयम करने सें (तद्रतिज्ञानं) तारों की गति का ज्ञान होता है।।
व्याख्या :
भाष्य - निश्चख्ल ताराविशेष का नाम “ध्रुव ” है, जब योगी संयम द्वारा उसका साक्षात्कार कर लेता है तब उसको सम्पूर्ण तारों की चाल का ज्ञान हो जाता है।। भाव यह है कि सम्पूर्ण तारे अपनी २ गति से भ्रमण कर रहे हैं परन्तु स्थूलदृष्टि से साधारण मनुष्यों को उनकी गति का ज्ञान नहीं होता, इसलिये जो योगी सम्पूर्ण तारों के मध्यवर्ती ध्रुवनामक निश्चल तारें में संयम करता है उसको उसकी निश्चलता प्रत्यक्ष हो जाने से सम्पूर्ण तारों की गति का ज्ञान हो जाता है।।
सं० - अब अन्य विभूति कथन करते हैं:-