सूत्र :भुवज्ञानं सूर्येसंयमात् ॥॥3/25
सूत्र संख्या :25
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द
अर्थ : पद० - भुवनाज्ञानं। सूय्र्ये। संयमात्।
पदा० - (सूय्र्ये) सूय्य मण्डल में (संयमात्) संयम करने से (भुवनज्ञान) भुवन का ज्ञान होता है।
व्याख्या :
भाष्य - भूलोक, अन्तरिक्षलोक, घूलोक, इन तीनों लोकों का नाम “भुवन ” है, जब योगी सूर्य्यमण्डल में संयम करता है जब उसको सूर्य्यमण्डल का यथार्थ बोध होजाने से त्रिलोकी का अपरोक्षज्ञान होजाता है।।
तात्पर्य्य यह है कि त्रिलोकी में सूर्य्यमण्डल ही सब मण्डलों का अधिपति है इसी के सहारे सम्पूर्णमण्डल प्राणनकिया कर रहे हैं और इसी के प्रकाश से मनुष्यमात्र का जीवन है, जो योगी इस प्रकार संयम द्वारा सूर्य्यमण्डल का साक्षात्कार कर लेता है उसको सब मण्डलों की गति, स्थिति तथा प्रलय और सात्त्विक, राजस तथा तामस सृष्टि का पूर्णज्ञान होजाता है, उसी का नाम “भुवनज्ञान” है।।
सं० - अब अन्य विभूति कहते हैं:-