सूत्र :चन्द्रे तारव्यूहज्ञानम् ॥॥3/26
सूत्र संख्या :26
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द
अर्थ : पद० - चन्द्रे। ताराव्यूहज्ञानम्।
पदा० - (चन्द्रे) चन्द्रलोक से संयम करने से (ताराव्यूहज्ञानं) तारों के व्यूह का ज्ञान होता है।।
व्याख्या :
भाष्य - अवयवों के परस्पर सम्बन्ध विशेष का नाम “व्यूह ” है, जब योगी चन्द्रमण्डल में संयम करता है तब उसको उक्त मण्डल का यथार्थ रूप से साक्षात्कार होता है उसके साक्षात्कार हो जाने से जिस २ स्थान में तथा जिस २ प्रकार के अवयवों द्वारा तारों की बनावट है उसका योगी को पूर्ण रूप से ज्ञान हो जाता है।।
तात्पर्य्य यह है कि चन्द्रमा में संयम करने से अमुकतारा, अमुक स्थान तथा अमुक प्रकार के अवयवों से उसकी रचना है इस प्रकार सम्पूर्ण तारों के व्यूह का ज्ञान योगी को हो जाता है।।
सं० - अब और विभूति कथन करते हैं:-