सूत्र :प्रवृत्त्यालोकन्यासात् सूक्ष्माव्यावहितविप्रकृष्टज्ञानम् ॥॥3/24
सूत्र संख्या :24
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द
अर्थ : पद० - प्रवृत्यालोकन्यासात्। सूक्ष्मव्ंयवहितविप्रकृष्टज्ञानम्।
पदा० - (प्रवृत्यालोकन्यासत्) संयमद्वारा प्रवृत्त्यालोक के न्यास से (सूक्ष्मव्यवहितविप्रकृष्टज्ञानम्) सूक्ष्म, व्यवहित तथा विप्रकृष्ट पदार्थों का ज्ञान होता है।
व्याख्या :
भाष्य - ज्योतिष्मती प्रवृत्ति का नाम “प्रवृत्ति” और उसके सात्त्विक प्रकाश का नाम “ आलोक ” तथा संयमद्वारा पदार्थों में उसके सम्बन्ध का नाम “न्यास ” है, जब योगी संयमद्वारा उक्त ज्योतिष्मती प्रवृत्ति का सूक्ष्म व्यवहित तथा दूरदेशवत्र्ती पदार्थों में न्यास करता है तब उसको उक्त पदार्थों का उपरोक्ष ज्ञान होजाता है।।
तात्पर्य्य यह है कि योगी को जिस प्रथम पादोक्त ज्योतिष्मती नामक मन की सूक्ष्म प्रवृत्ति का लाभ हुआ है वह सूर्य्य की भांति नितान्त प्रकाशस्वरूप तथा अप्रतिबद्ध वेगवाली है, उसका जिस पदार्थ के साथ सम्बन्ध किया जाय वह उसको प्रत्यक्ष दिखला देती है, इसलिये संयमद्वारा जिस २ सूक्ष्म व्यवधान वाले तथा दूरवत्र्ती पदार्थ के साथ उसका सम्बन्ध होता है योगी को उस २ पदार्थ का अपरोक्षा ज्ञान होता है।।
सं० - अब और विभूति कहते हैं:-