सूत्र :बलेषु हस्तिबलादीनी ॥॥3/23
सूत्र संख्या :23
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द
अर्थ : पद० - बलेपु। हस्तिबलादीनि।
पदा० - (बलेपु) बलों में संयम करने से (हस्तिबलादीनि) हस्ति आदि के बल समान बल की प्राप्ति होती है।।
व्याख्या :
भाष्य - जब योगी हस्ती आदि के बलों में संयम करता है तब उसको बल के स्वरूप का पूर्ण रीति से ज्ञान हो जाता है कि अमुक प्रकार के ब्रहाचर्य्य तथा आहार, विहार, व्यायाम आदि से हस्ती के बल-समान बल की प्राप्ति होती है, इस प्रकार संयम करने से प्रतिदिन बल की वृद्धि का यत्न करता हुआ योगी अल्पकाल में ही हस्ति आदि के समान बल को प्राप्त होजाता है।।
तात्पर्य्य यह है कि ब्रहाचर्य्य पूर्वक संयम करने से योगी को ऐसे बल की प्राप्ति होती है जिसको हस्तिबल, सिंहबल, आदि कहा जाय तो कुछ अनुचित नहीं अर्थात् ब्रहाचर्य्य पूर्वक संयम करने से योगी का मानस तथा शारीरिक बल इतना बढ़ जाता है जिससे वह हस्ति आदि को भी तुच्द समझता है।।
सं० - अब अन्य विभूति कथन करते हैं:-