DARSHAN
दर्शन शास्त्र : योग दर्शन
 
Language

Darshan

Shlok

सूत्र :सोपक्रमं निरुपक्रमं च कर्म तत्संयमातपरान्तज्ञानम् अरिष्टेभ्यो वा ॥॥3/21
सूत्र संख्या :21

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द

अर्थ : पद० - सोपक्रमं। निरूपकमं । च। कर्म। तत्संयमात्। अपरान्तज्ञानं। अरिष्टेभ्यः । वा। पदा० - (सोपक्रमं, निरूपकमं , च , कर्म) सोमकम, निरूपक्रम भेद से कर्म दो प्रकार के हैं (तत्संयात्) उनमे संयम करने (वा) और (अरिष्टेभ्य:) अरिष्टों के देखने से (अपरान्तज्ञानं) मृत्यु का ज्ञान होता है।।

व्याख्या :
भाष्य - यहां प्रारब्ध कर्मों का नाम “कर्म” फल देने के लिये उनके तीव्र व्यापार का नाम “उपक्रम” उक्त व्यापार द्वारा जिस प्रारब्ध कर्म का फल अल्प शेष है उसका नाम “सोपक्रम” इससे विपरीत का नाम “निरूपक्रम” और मरण के सूचक चिन्हों का नाम “अरिष्ट” है, जब योगी को संयम द्वारा उक्त दोनों प्रकार के कर्मों तथा अरिष्टों का साक्षात्कार होता है जब इसको अपने मरण काल का ज्ञान हो जाता है कि इतने काल में मेरा देहान्त हो जायगा।। भाव यह है कि सोपकम और निरूपकम भेद से कर्म दो प्रकार के हैं जो यागी दोनों प्रकार के कर्मों में संयम करता है उसको इस प्रकार का ज्ञान हो जाता है कि जिन पुरूषों के प्रारब्ध कर्मों का फल अल्प शेष किंवा बहुशेष होता है उनक शरीर की अवस्था प्राय: इसी प्रकार की हुआ करती है जैसी कि अब मेरी है, इसलिये मेरे प्रारब्ध कर्म का फल अब समाप्त होनेवाला है अथवा अभी बहुत शेष है, इस प्रकार का ज्ञान हो जाने से योगी को सहत में ही अपने मरण काल का ज्ञान हो जाता है और अरिष्टों के देखने से और भी निश्चय हो जाता है कि अब मेरे शरीरपात में इतने काल का विलम्ब है; आध्यात्मिक, आधिभौतिक तथा आधिदैविक भेद से अरिष्ट तीन प्रकार के होते है, कानों को अडग्गुलि तथा हस्त द्वारा बन्द करने से भीतर की ध्वनि को न सुनने तथा नेत्रों के निमीलन से अग्रिकणसमान भीतर ज्योति के प्रतीत न होने को “आध्यात्मिक” अकस्मात् प्रकति तथा अन्न, जल, रस के विपर्य्यय हो जाने का नाम “आधिभौतिक” और अकस्मात् नेन्नों के घूम जाने से द्युलोक के विपरीत देख पड़ने को “आधिदैविक” कहते हैं; इन तीन प्रकार के अरिष्टों का दर्शन प्राय: मृत्यु के समीप काल में ही हुआ करता है, इसलिये संयम द्वारा प्रारब्ध कर्मों के ज्ञान तथा अरिष्टों के देखने से योगी को अपने मरण समय का ज्ञान हो जाता है यही ज्ञान उक्त संयम की विभूति है।। यहां इतना स्मरण रहे कि उक्त अरिष्टों के देखने से साधारण मनुष्य को भी मृत्यु का ज्ञान हो सकता है परन्तु उसको निश्चय ज्ञान नहीं होता और योगी का निश्चयात्मक ज्ञान होता है यह विशेष है।। सं० - अब और विभूति कहते हैं:-

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