DARSHAN
दर्शन शास्त्र : योग दर्शन
 
Language

Darshan

Shlok

सूत्र :क्रमान्यत्वं परिणामान्यतेवे हेतुः ॥॥3/15
सूत्र संख्या :15

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द

अर्थ : पद० - क्रमान्यत्वं । परिणामन्यत्वे। हेतु:। पदा० - (परिणामन्यत्वे) धर्मपरिणाम, लक्षणपरिणाम तथा अवस्था परिणाम के नानाभेद होने से (क्रमान्यत्वं) उनके कम का भेद (हेतु:) कारण है।।

व्याख्या :
भाष्य - पूर्वापरीभाव अर्थात् आगे पीछे का नाम “क्रम” और भेद तथा नानापन का नाम “अन्यत्व” है, हेतु, लिग्ड, कारण, यह सब पय्र्याय शब्द हैं, मृत्तिका से चूर्ण, चूर्ण से पिण्ड, पिण्ड से कपाल, कपाल से घट, इस प्रकार जो मृत्तिका धर्मी के चूर्णादि धर्मपरिणामों का पूर्वापरीभाव है उसको “धर्मपरिणामकम” कहते हैं, इसी का भेद धर्मपरिणाम के नाना होने में कारण है अर्थात् जो पूर्वोक्त चूर्णादिक एक मृत्तिका धर्मी के परिणाम है उनमें मृत्तिका चूर्ण का कम चूर्णपिण्उ के क्रम से और चूर्णपिण्ड का कम पिण्डकपाल के कम से अन्य है, क्योंकि मृत्तिका से प्रथम चूर्ण और चूर्ण से पिण्ड होता है, इस प्रकार जो घटपर्य्यन्त धर्मो के क्रम का अन्यत्व देखा जाता है वह धर्मपरिणामों के नाना होने से बिना नहीं हो सकता, इसलिये अनुमान होता है कि धर्मपणिाम नाना हैं।। जैसे धर्मपरिणाम कम भिन्न - भिन्न है, वैसे ही लक्षणपरिणाम कम तथा अवस्थापरिणामकम भी भिन्न - भिन्न हैं, धर्मो का अनागतभाव से वत्र्तमान भाव को तथा वत्र्तमानभाव से अतीतभाव को प्राप्त होना “लक्षणपरिणामकम” और दत्र्तमान लक्षण घट-पटादि धर्मों का प्रथम नूतनतम से नूतनतर तथा नूतनतर से नूतन और नूतन से पुराण, पुराण से पुराणतर तथा पुराणतर से पुराणतम अवस्था को प्राप्त होना है उसको “अवस्थापिरणामक्रम” कहते हैं, इनमें अनागतभाव से वत्र्तमानभाव की प्राप्ति का क्रम वत्र्तमानभाव से अतीत भाव की प्राप्ति के क्रम से और नूतनतम अवस्था से नूतनतर अवस्था की प्राप्ति का क्रम नूतनतर अवस्था सें नूतन अवस्था की प्राप्ति के क्रम से भिन्न है, इस प्रकार उक्त क्रमों को भेद पाये जाने से अनुमान होता है कि धर्मपरिणाम की भांति लक्षणपरिणाम तथा अवस्थापरिणाम भी नाना हैं।। भाव यह है कि जैसे एक धर्मी में प्रथम धर्म के अनन्तर धर्मान्तर का होना बिना क्रम नहीं हो सकता वैसे ही धर्मो को प्रथम काल से कालान्तर की तथा एक अवस्था से अवस्थान्तर की प्राप्ति भी बिना क्रम नहीं हो सकती और वह क्रम नाना हैं, इसलिये उक्त तीनों परिणाम भी नाना हैं।। यहां इतना विशेष स्मरण रहे कि जो मृदादिकों तथा चूर्णादिकों का परस्पर धर्मधर्मिभाव दिखलाया है वह कल्पनामात्र है वास्तव नहीं, क्योंकि चूर्णादिक मृत्तिका ही हैं विकार नहीं और धर्मधर्मिभाव वास्तव में विकार विकारी का ही होता है अन्य का नहीं, इसलिये वास्तव में पृथिव्यादि भूतों का गन्धादि तन्मात्रों के साथ, गन्धादि तन्मात्रों का अहंकार के साथ, अहंकार का महत्तत्व के साथ, और महत्तत्व का प्रकृति के साथ ही धर्मधर्मिभाव जानना चाहिये।। इसका विशेष विवरण “सांख्यार्य्यभाष्य” में किया है विस्तार के अभिलाषी वहां अवलोकन करें।। सं० - अब उक्त तीनों परिणामों में संयम करने से होनवाली विभूति का निरूपण करते हैं:-

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: fwrite(): write of 34 bytes failed with errno=122 Disk quota exceeded

Filename: drivers/Session_files_driver.php

Line Number: 263

Backtrace:

A PHP Error was encountered

Severity: Warning

Message: session_write_close(): Failed to write session data using user defined save handler. (session.save_path: /home2/aryamantavya/public_html/darshan/system//cache)

Filename: Unknown

Line Number: 0

Backtrace: