सूत्र :परिणामत्रयसंयमाततीतानागत ज्ञानम् ॥॥3/16
सूत्र संख्या :16
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द
अर्थ : पद० - परिणामत्रयसंयमात् । अतीतानागतज्ञानम्।।
पदा०- (परिणामत्रयसंयमात्) पूर्वोक्त तीनों परिणामों में संयम करने से (अतीतानागज्ञानम्) अतीत, अनागत पदार्थों के उक्त परिणामों का ज्ञान होता है।।
व्याख्या :
भाष्य - जब योगी वत्र्तमान पदार्थों के मध्य किसी एक पदार्थ के उक्त तीनों परिणामों में संयम करता है जब इसको एक पदार्थ में साक्षात्कार होने से अतीतानागत सम्पूर्ण पदार्थों के परिणामों का साक्षात्कार हो जाता है अर्थात् प्रकृति पर्य्यन्त जिने भूतेन्द्रियात्मक पदार्थ हैं वह सब परिणामशील हैं और उनसे भिन्न पुरूष ही एक अपरिणामी, कूटस्थ, नित्य है, इस प्रकार योगी को जो सम्पूर्ण पदार्थों में उक्त तीनों परिणामों का अपरोक्षज्ञान होता है वही परिणामत्रयसंयम की विभूति है।।
सं० - अब संयम से होनेवाली दूसरी विभूति का निरूपण करते हैं:-