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योग दर्शन-COLLECTION OF KNOWLEDGE
DARSHAN
दर्शन शास्त्र : योग दर्शन
 
Language

Darshan

Shlok

सूत्र :शानोदिताव्यपदेश्यधर्मानुपाती धर्मी ॥॥3/14
सूत्र संख्या :14

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द

अर्थ : पद० - शान्तोतिाव्यपदेश्यधर्मानुपाती । धर्मी। पदा० - (शान्तोदि०) अतीत, वत्र्तमान तथा अनागत धर्मो में अनुगत का नाम (धर्मी) धर्मी है।

व्याख्या :
भाष्य - जो धर्म कार्य्य करके उपराम हो गये हैं उनका नाम “ शान्त ” जो कार्य्य करने में वत्र्तमान है उनका नाम “ उदित ” और जो कारण में सूक्ष्मरूप से स्थित हैं ऐसे अनागत धर्मो का नाम “अवयपदेश” तथा अनुगत का नाम “अनुपाती” है, अनुगत, अनुस्यूत, अन्वयी यह तीनों पय्र्याय शब्द हैं, जिस शब्द का भूत, भविष्यत्, वत्र्तमान घटादि धर्मो में अन्वय अर्थात् उक्त धर्म जिसकी अवस्था-विशेष और जो उक्त धर्मो का अन्वयी कारण है उस मृत्तिका का नाम “ धर्मी” है।। भाव यह है कि मृत्तिका में जो पिण्ड, कपाल, घटादि के उत्पन्न करने की योग्यतारूप शक्ति है जिससे घटादिधर्म अनागत से वत्र्तमान और वत्र्तमान से अतीतावस्था को प्राप्त होते रहते हैं उसको “धर्म” और उक्त शक्ति के आश्रय मृतिका को “धर्मी” कहते हैं।। यहां इतना स्मरण रहे कि अनागत के अनन्तर वत्र्तमान और वत्र्तमान के अनन्तर अतीत होता है परन्तु अतीत के अनन्तर वत्र्तमान नहीं होता, क्योंकि अनागत तथा वत्र्तमान का ही पूर्व और पश्वाद्धाव देखा जाता है, अतीत तथा वर्तमान का नहीं।। सं० - अब उक्त परिणामों के नाना भेद होने में हेतु कथन करते हैं:-