सूत्र :एतेन भूतेन्द्रियेषु धर्मलक्षणावस्था परिणामा व्याख्याताः ॥॥3/13
सूत्र संख्या :13
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द
अर्थ : पद० - एतेन । भूतेन्द्रियेषु। धर्मलक्षणावस्थापरिणामा:। व्याख्याता:।
पदा० - (एतेन) चित्त के समान (भूतेन्द्रियेषु) भूत और इन्द्रियों मे भी (धर्मलक्षणावस्थपरिणामा:) धर्मपरिणाम, लक्षणपरिणाम, अवस्थापरिणाम, यह तीनों परिणाम (व्याख्याता:) जानने चाहिये।।
व्याख्या :
भाष्य - पृथिवी आदि का नाम “ भूत ” और चक्षु आदि का नाम “ इन्द्रिय ” है, धर्मपरिणाम, लक्षणपरिणाम तथा अवस्थापरिणाम का स्वरूप इसी पाद के ९ वें सूत्र में विस्तारपूर्वक निरूपण किया है, जिस प्रकार यह तीनों परिणाम चित्तधर्मी में होते हैं इसी प्रकार पृथिवी आदि भूतों और चक्षु आदि इन्द्रियों नें भी होते हैं।।
भाव यह है कि पिण्डाकर तथा कपालरूप पूर्व धर्म के तिरोभावपूर्वक जो घटरूप धर्म का प्रादुर्भाव है वह पृथिवी का “ धर्मपरिणाम ” और घटरूपधर्म का जो अनागत लक्षण के परित्यागपूर्वक वत्र्तमान लक्षणवाला होना है वह “ लक्षणपरिणाम ” और वत्र्तमानलक्षण घट की जो नूतनमता, नूतनतरता, नूतनतादि के परित्यागपूर्वक क्षण २ में पुराणतादि को प्राप्त होना है वह “ अवस्थापरिणाम ” है, उक्त ज्ञान का जो अनागत लक्षण के परित्यागपूर्वक वत्र्तमान लक्षणवाला होना है वह “ लक्षणपरिणाम ” और वत्र्तमान दश में उक्त ज्ञान का जो प्रतिक्षण स्फुटतादि के परित्यागपूर्वक अस्फुटतादि को प्राप्त होना है वह “ अवस्थापरिणाम ” है, इसी प्रकार जलादि भूतों और अन्य इद्रियों में भी उक्त तीनों प्रकार का परिणाम जानना चाहिये।।
यहां इतना स्मरण रहे कि जो धर्मीमात्र में धर्मपरिणाम, लक्षणरिणाम तथा अवस्थापरिणम भेद से तीन प्रकार के परिणाम कथन किय हैं इनमें एक अवस्थापरिणाम ही मुख्य है और धर्मपरिणाम तथा लक्षणपरिणाम यह दोनों इसी का भेद विशेष है, क्योंकि मृत्तिका ही पूर्वकाल तथा पूर्वावस्था को त्याग कर कालान्तर में अवस्थान्तर को प्राप्त हुई घट नाम से कही जाती है वस्तु: घट मृत्तिका से कोई अन्य पदार्थ नहीं, ऐसा ही सब पदार्थों में जानना चाहिये, जैसा कि व्यासभाष्य में वर्णन किया है कि “ धर्मिणोऽपि धर्मान्तरमवस्था, धर्मस्यलक्षणान्तरमवस्था, इत्येक एव द्रव्यपरिणामोभेदेनोपदर्शित: ”= पूर्वधर्म के तिरोभावपूर्वक धर्मान्तर का प्रादुर्भाव होना धर्मी की एक अवस्था विशेष है, अन्यधर्मो को अनागत लक्षण के त्यागपूर्वक वत्र्तमान लक्षण का लाभ होना भी अवस्था विशेष ही है, इसलिये धर्मीमात्र में होनेवाला एक ही अवस्था परिणाम अवान्तर भेद से तीन प्रकार का कथन किया है।।
सं० - जिस धर्मी के उक्त तीन परिणाम होते हैं अब उसका स्वरूप कथन करते हैं:-