सूत्र :तदपि बहिरङ्गं निर्बीजस्य ॥॥3/8
सूत्र संख्या :8
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द
अर्थ : पद० - तत्। अपि। वहिरग्डं। निर्बीजस्य।
पदा० - (तत्) धारणादि तीनों (अपि) भी (निर्बीजस्य) असम्प्रज्ञात योग के वहिरग्डं साधन हैं।।
व्याख्या :
भाष्य - जैसे यम आदि पांच चित्त शुद्धि द्वारा कारण होने से सम्प्रज्ञातयोग के वहिरग्डं साधन हैं वैसे ही धाराणादि तीनों भी परवैराग्य द्वारा कारण होने से असम्प्रज्ञात योग के वहिरग्डं साधन हैं।।
तात्पर्य्य यह है कि जैसे यम आदिकों के अनुष्ठान से प्रथम चित्तुंशुद्धि और पश्चात् सम्प्रज्ञातयोग की प्राप्ति होती है इसी प्रकार धारणादि के अभ्यास से प्रथम सम्प्रज्ञातयोग और पश्चात् पर-वैराग्य द्वारा असम्प्रज्ञातयोग की प्राप्ति होती है इसलिये परम्परया कारण होन से यम आदि की भांति धारणादि तीनों भी असम्प्रज्ञातयोग के वहिरग्डं साधन हैं।।
सं० - धारणा, ध्यान, समाधि का निरूपण करके अब तत्साध्य विभूतियों का निरूपण करने के लिये उनके विषय परिणामत्रय का निरूपण करते हुए प्रथम प्रसत्र-संगति से असम्प्रज्ञात काल में होने वाले निरोधरूप चित्तपरिणाम का स्वरूप दिखाते हैः-