DARSHAN
दर्शन शास्त्र : योग दर्शन
 
Language

Darshan

Shlok

सूत्र :त्रयमन्तरन्गं पूर्वेभ्यः ॥॥3/7
सूत्र संख्या :7

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द

अर्थ : पद० - त्रयम्। अन्तरग्डं। पूर्वेभ्य: । पदा० - (त्रयम्) धारण, ध्यान, समाधि, यह तीनों (पूर्वेभ्य:) यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, इन पांचो की अपेक्षा (अन्तरग्डं) सम्प्रज्ञातयोग के अन्तरग्डं साधन हैं।

व्याख्या :
भाष्य - जिस अग्डं का विषय अपने अग्डीं के समान है उसको “अन्तरग्डं” और दूसरे को “वहिरग्डं” साधन कहते हैं, धारणा, ध्यान, समाधि और सम्प्रज्ञातयोग का समान विषय है यम आदिकों का नहीं, इसलिये धारणादि तीनों सम्प्रज्ञातयोग के अन्तरग्डं और यम आदि वहिरग्डं साधन हैं।। तात्पर्य्य यह है कि धारणादि तीनों समान विषय होने के कारण योग को साक्षात् सिद्ध करते हैं और यम आदि पांचो चित्तशुद्धि द्वारा सिद्ध करते हैं, इसलिये यमादिक परम्परया साधन होने से वहिरग्डं और धारणादि तीनों साक्षात् साधन होने से योग के अन्तरग्डं अग्डं हैं।। सं० - अब उक्त धारणादि तीनों के निर्बीजयोग का वहिरग्डं अग्डं कथन करते हैं:-

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