सूत्र :तत्र प्रत्ययैकतानता ध्यानम् ॥॥3/2
सूत्र संख्या :2
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द
अर्थ : पद० - तत्र। प्रत्ययैकतानता। ध्यानम्।
पदा० - (तत्र) धारणा के अनन्तर ध्येय पदार्थ में होनेवाले (प्रत्ययैकतानता) चित्तवृत्ति की एकतानता को (ध्यानं) ध्यान कहते हैं।।
व्याख्या :
भाष्य - चित्तवृत्ति का नाम “प्रत्यय” और प्रत्ययों के एकरस प्रवाह का नाम “एकतानता” है, योगी के चित्त में जो ध्ययेमात्र को विषय करने वाली विजातीय वृत्तियों के व्यवधान से रहित सजातीय वृत्तियों की एकतानता उदय होती है उसी का नाम “ध्यान” है।।
सं० - अब समाधि का लक्षण करते हैं:-