सूत्र :तज्जयात् प्रज्ञालोकः ॥॥3/5
सूत्र संख्या :5
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द
अर्थ : पद० - तज्जयात्। प्रज्ञालोक:।
पदा० - (तज्जयात्) संयम के सिद्ध होजाने से योगी को (प्रज्ञालोक:) प्रज्ञालोक की प्राप्ति होती है।।
व्याख्या :
भाष्य - विजातीय वृत्तियों के व्यवधान से रहित सजातीय वृत्तियों के निर्मलप्रवाह में बुद्धि की स्थिरता का नाम “प्रज्ञालोक” है, जब अभ्यास के बल से संयम दृढ़ हो जाता है जब योगी को उक्त प्रज्ञालोक प्राप्त होता है।।
भाव यह है कि जैसे २ संयम स्थिर होता जाता है वैसे २ ही समाधि में होनेवाली प्रज्ञा भी निर्मल होती जाती है, उसकी निर्मलता से जो योगी को ईश्वर पर्य्यन्त भूत भौतिक सम्पूर्ण पदार्थों का साक्षात्काररूप प्रज्ञा का लाभ होता है वही प्रज्ञालोक संयमजय का फल है।।
सं० - अब उक्त फल की सिद्धि के लिये संयम का विनियोग कथन करते हैं:-