सूत्र :तदभावनिर्धारणे च प्रवृत्तेः 1/3/37
सूत्र संख्या :37
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : पदार्थ- (तत्) उसके (अभाव) अभाव के (निर्धारणे) निश्चय करने में (च) भी (प्रवृत्तेः) गौतम की प्रवृत्ति देखने से।
व्याख्या :
भावार्थ- क्योंकि वेद के लिये सत्य का होना अवश्य है, इस कारण जो सत्य बोलता है, शूद्र नहीं; जैसा कि जिस समय सत्यकाम गौतम ऋषि के गुरूकुल में शिक्षा प्राप्त करने गया और गौतम ने उससे पूछा कि तू किस गोत्र में उत्पन्न हुआ है, क्योंकि सत्यकाम का कोई गोत्र न था; इस कारण उसने सत्य-सत्य अपना वृत्तान्त प्रकट कर दिया, जिससे गौतम ने कहा कि ब्रह्माण के सिवाय इस प्रकार कौन सत्य बोल सकता है; निदान सत्य काम का उपनयन कराकर उसको शिक्षा दी।
प्रश्न- क्या क्षत्रिय और वैश्य सत्य नहीं बोलते? केवल सत्य से गौतम ने ब्रह्माण कैसे बतला दिया?
उत्तर- क्षतिय और वैश्य रजोगुणी होते है; जिसमें सच झूँठ मिला रहता है। सिवाय सतोगुणी ब्रह्माण के और में पूर्ण प्रकार सत्यता नहीं पाई जाती। शूद्र को ब्रह्मा-विद्या का अधिकार नहीं, इसके लिये और प्रमाण देते हैं।