A PHP Error was encountered

Severity: Warning

Message: fopen(/home2/aryamantavya/public_html/darshan/system//cache/ci_sessionfb4e5de282fb669525d46f2876de506fa2bf4c91): failed to open stream: Disk quota exceeded

Filename: drivers/Session_files_driver.php

Line Number: 172

Backtrace:

File: /home2/aryamantavya/public_html/darshan/application/controllers/Darshancnt.php
Line: 12
Function: library

File: /home2/aryamantavya/public_html/darshan/index.php
Line: 233
Function: require_once

A PHP Error was encountered

Severity: Warning

Message: session_start(): Failed to read session data: user (path: /home2/aryamantavya/public_html/darshan/system//cache)

Filename: Session/Session.php

Line Number: 143

Backtrace:

File: /home2/aryamantavya/public_html/darshan/application/controllers/Darshancnt.php
Line: 12
Function: library

File: /home2/aryamantavya/public_html/darshan/index.php
Line: 233
Function: require_once

वेदान्त-दर्शन-COLLECTION OF KNOWLEDGE
DARSHAN
दर्शन शास्त्र : वेदान्त-दर्शन
 
Language

Darshan

Adhya

Shlok

सूत्र :कम्पनात् 1/3/39
सूत्र संख्या :39

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती

अर्थ : पदार्थ- (कम्पनात्) काँपने से वह भय देनेवाला परमात्मा है।

व्याख्या :
भावार्थ- क्योंकि बतलाया गया है कि जिससे सब भयभीत होते हैं, इस कारण वह प्राण परमात्मा है अथवा सब उसी के भय से भयभीत होते हैं; जैसाकि उपनिषद् में विषान कि उस परमामा के भय से नियमानुसार अग्नि तपती अर्थात् कर्म करती है, उसके भय से सूर्य नियमानुकूल चलता है, उसी के भय से इन्द्र अर्थात् बिजली चलायमान होती है, उसी के भय से वायु चलती है, उसी के नियम से मृत्यु काम करती है, सिवाय परमात्मा के इनको भय देनेवाला कोई नहीं। प्रश्न- यदि प्राणों से प्राणवायु ली जावे; क्योंकि उसके निकलने से सब भयभीत होते हैं, तो यह प्रसिद्ध अर्थ होगा। उत्तर- प्राणवायु के निकलने से सब प्राणी तो भयभीत होते हुए स्वीकार किये जा सकते हैं; परन्तु वायु को, प्राणवायु को, प्रणायु से क्या भय हो सकता है। इसी प्रकार सूर्य और बिजली और मृत्यु और अग्नि को भी उससे कम भय नहीं; इस कारण जिसके भय से सब काँपते हैं, वह केवल परमात्मा ही है और उसके नामों के अंदर प्राण आदि विद्यमान भी हैं; इसीलिये भय का कारण परमात्मा ही मानना पड़ता हैं। क्योंकि बिना वायु के जिसका नाम प्राण से लिया जा सकता है और और सब जगत्मय खानेवाला है, वायु से वायु को दोष भय मानना आत्माश्रय दोष है; इस कारण बेदों ने सबकों शक्ति देनेवाला परमात्मा को ही बतलाया है। शेष सब पदार्थ सिवाय जीवात्मा के नैमित्तिक क्रियावान हैं अर्थात् सवतंत्र क्रिया नहीं कर रहे हैं उनमें जो कुछ शक्ति प्रतीत होती है, वह परमात्मा के नियम अर्थात् भय से दृष्टि आती है। प्रश्न- जबकि वायु अर्थात् प्राण मनुष्य-जीवन का कारण है; पशुजीवन भी उसी से प्रतीत होता है; उसके रहने से जीवन और निलने से मृत्यु नजर आती है, स्पष्ट मानना पड़ता है कि प्राणवायु के निकलने से भय है। उत्तर- कोई जीव, प्राण और अपान के कारण नहीं जाता; किंतु जिस चेतन के सहारे ययह प्राण और अपान रहते हैं, उससे जीत हैं। जबकि श्रुति ने यह बतलाया है और युक्ति से भी सिद्ध होता है, तो उसके विरूद्ध मानना बुद्धिमत्ता नहीं। प्रश्न- छान्दोग्योपनिषद् में जो विद्या में यह यह लिखा है कि यह जीवात्मा उस शरीर से पृथक् होकर परम ज्योतिस्वरूप को प्राप्त होकर अपने रूप से प्रकट होता है; कि परम ज्योति सूर्य है, अग्नि है या परमात्मा?