सूत्र :ज्योतिर् दर्शनात् 1/3/40
सूत्र संख्या :40
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : पदार्थ- (ज्योतिः) परमात्मा हैं, ज्योति अर्थात् प्रकाश है (दर्शनात्) प्रकरण देखने से।
व्याख्या :
भावार्थ- इस जगह ज्योतिः शब्द के अर्थ ब्रह्मा ही है; क्योंकि स्थान के विषय को देखने से स्पष्ट प्रकट होता है कि इस समय परमात्मा जो पापों से रहित है, उसकी अनुवृत्ति आती है अर्थात् जिसका जिक्र आ चुका है, उसको मिलाकर यहाँ अर्थ निकालना चाहिए; क्योंकि सबसे बड़ी ज्योतिः सिवाय परमात्मा के दूसरी नहीं हो सकती।
प्रश्न- क्योंकि ज्योतिः शब्द अग्नि के लिये प्रयोग हो चुका है और यहाँ कोई ऐसा स्पष्ट चिन्ह ही नहीं; इस कारण यहाँ प्रथम मुमुक्षु अर्थात् मोक्ष के इच्छा के लिये उपासना बतलाई है।
उत्तर- नहीं, स्पष्टतया परम ज्योतिः के अर्थ ब्रह्मा के हैं; क्योंकि शरीर से रहित ज्योतिः बतलाकर प्रकट किया है कि वह ब्रह्मा सूर्य का शरीर है। इस कारण उससे अभिप्राय नहीं जिया जा सकता।