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वेदान्त-दर्शन-COLLECTION OF KNOWLEDGE
DARSHAN
दर्शन शास्त्र : वेदान्त-दर्शन
 
Language

Darshan

Adhya

Shlok

सूत्र :सुषुप्त्युत्क्रान्त्योर् भेदेन 1/3/42
सूत्र संख्या :42

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती

अर्थ : पदार्थ- (सुषुप्ति) गाढ़निद्रा (उत्क्रान्त्योः) जाग्रत् अवस्था अर्थात् हालते बेदारी (भेदेन) पार्थक्य बतलाया जाने से।

व्याख्या :
भावार्थ- क्योंकि निद्रावस्था और जाग्रतावस्था पृथक्-पृथक् करके श्रुति ने बतलाई है; इस कारण जीव और ब्रह्मा का भेद होने से जहाँ ब्रह्मा का लक्षण मिले, ब्रह्मा और जहाँ जीव का लक्षण मिले, वहाँ जीव लेना उचित है; इस कारण उपर्युक्त श्रुति में ब्रह्मा ही लेना उचित है। प्रश्न- आज तक संब आचार्य तो अभेद अर्थात् और ब्रह्मा दोनों को एक बतलाते रहे हैं, तुम भेद बतलाते हो? उत्तर- ये सूत्र न तो हमने मन से बनाये हैं, न हम अपनी ओर से ही कुछ कहते हैं। प्रथम भी रामानुज आदि आचार्य जीव और ब्रह्मा का भेद मानते थे, अब भी बुद्धिमान और विद्वान मनुष्य भेद मानते हैं। इस कारण व्यासजी तो जगह ब जगह जीव और ब्रह्मा का भेद प्रकट करते हैं। इतने प्रमाणों के होने पर भी यदि कोई अपने स्वार्थ से जीव और ब्रह्मा का भेद न माने, तो उसकी इच्छा; वरना श्रुति और सूत्रों से तो स्पष्टता भेद प्रकट होता है; इस कारण विज्ञान आत्मादि सब नाम जीव के हैं और ब्रह्मा परमात्मा आकाशादि नाम ब्रह्मा के हैं और श्रुति तो पुष्ट प्रमाणों से जीव और ब्रह्मा का भेद बतलाती है। जीव और ब्रह्मा के भेद-समर्थन में एक और प्रमाण देते हैं।