सूत्र :सर्वधर्मोपपत्तेश् च 2/1/36
सूत्र संख्या :36
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : पदार्थ- (सर्वधर्म) सब धर्मों के (उपपत्तेः) पाये जाने से (च) और।
व्याख्या :
अर्थ- चेतन, जगत् का कारण अर्थात् इच्छा करनेवाला है। वा प्रकृति अर्थात् स्वभाव से करनेवाला इस विषय में जो वेद का निश्चय किया हुआ अर्थ है, उस पर जो शंका होती है, उस का निवृत्त करते हुए आचार्य अपना सिद्धान्त दिखलाते हैं कि उस ब्रह्मा में, जिसको जगत् का कारण बतलाया गया है, सब धर्म युक्तियों से पाये जाते हैं। ऐसा कोई धर्म नहीं, जो ब्रह्मा के बिना विद्यमान रह सके।
प्रश्न- जड़ पदार्थों में जो जड़पन है, क्या वह भी ब्रह्मा के कारण से है।?
उत्तर- यदि ब्रह्मा परमाणुओं के भीतर गति से संयोग उत्पन्न न करे, तो कोई जड़ पदार्थ प्रकट ही नहीं होंगे, जिस प्रकार घड़ी के भीतर के चक्र घूम रहें हैं, वे स्वतंत्र घूमते हुए प्रतीत होते हैं; परंतु बुद्धिमान् मनुष्य जानते हैं कि यदि घड़ीसाज नियम में स्थित करके कुंजी न देता, तो कोई चक्र कार्य करता हुआ दीख न पड़ता। कोई साधारण मनुष्य घड़ीसाज को कुंजी देते अुए न देखकर यह कह दे कि यह घड़ी स्वयं चल रही है, ठीक नहीं।
।।वेदान्त दर्शन उत्तरार्द्ध समाप्तम्।।