सूत्र :ज्योतिषि भावाच् च 1/3/32
सूत्र संख्या :32
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : पदार्थ- (ज्योतिषि) ऊपर के चन्द्र-सूर्य-तारे आदि योनियों में (भावाच्च) देवता शब्द से लिये जाने से।
व्याख्या :
भावार्थ- क्योंकि देवता शब्द से सूर्य, चन्द्र तारे प्रकाश देनेवाले शरीरों का अर्थ लिया जाता है, जो कि प्रकाश के मण्डल हैं; परन्तु उनमें हृदयकाश आदि का होना सिद्ध नहीं होता औ जहाँ हृदय और मन न हों, तो उनको विद्या का अधिकार कैसे हो सकता है, जब सूर्यलोक आदि भी पृथ्वी की भाँति अचेतन अर्थात् ज्ञानरहित हैं; इस कारण तारागण आदि भी समझ लेना चाहिए। इस कारण मूतिवाले देवताओं को भी ब्रह्मा-विद्या का अधिकार नहीं सिद्ध होता और इसमें प्रत्यक्ष आदि तो उअचत ढंग पर मान नहीं सकते, न इतिहास पुराणादि शब्द मनुष्यों के बनाये हुए इस परोक्ष विषय में प्रमाण हो सकते हैं