सूत्र :आकाशोऽर्थान्तरत्वादिव्यपदेशात् 1/3/41
सूत्र संख्या :41
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : पदार्थ- (आकाशः) परमात्मा का नाम आकाश (अर्थान्तरत्वादि) अर्थांन्तर आदि (व्यपदेशात्) बतलाया जाने से।
व्याख्या :
भावार्थ- आकाश नाम रूप से रहित जो इन्द्र है, वह ब्रह्मा है, वह ही अमृत है; उसी की श्रुति आत्मा बतलाती है। उस स्थान पर यह शंका होती है कि वह आकाश जिसका उस श्रुति में उसी का विधान आया है, भूत आकाश है वा परमात्मा है। साधारणतया तो भूत आकाश ही मानना चाहिए; परन्तु जहाँ जगत् का उत्पन्न करनेवाला बताया है, वहाँ ब्रह्मा का नाम आकाश है; इस कारण यहाँ आकाश शब्द किस अर्थ में? उसका निर्णय व्यासजी उस सूत्र से करते हैं कि व भूताकाश नाम रूप से पृथक् होने से आकाश ब्रह्मा का नाम है; क्योंकि जितने नाम रूप में है, वह उत्पन्न पदार्थों में रहते हैं। जीव भी नाम रूपवाली वस्तुओं के साथ संबंध रखता है; इस कारण ब्रह्मा ही आकाश शब्द से अभिप्रेत है।
प्रश्न- जीव, ब्रह्मा का भेद है, जो नाम रूप्वाले पदार्थों में जीव का संबंध माना जावे; ब्रह्मा को न माना जावे, क्योंकि वृहदारण्यक उपनिषद् में बहुत आत्मा स्वीकार किये हैं।