सूत्र :शुगस्य तदनादरश्रवणात् तदाद्रवणात् सूच्यते हि 1/3/34
सूत्र संख्या :34
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : पदार्थ- (शुक्) शोक (अस्य) इस जानश्रुति का (तत्) उस जानश्रुति के (अनादर) कमकदरी वा अधिकार न होना (श्रवणात्) सुनने से (तदा) उस समय (द्रवणात्) नर्म दिल होने से (सूच्यते) मालूम होता है कि शूद्र को अधिकार नहीं (हि) निश्चय करके।
व्याख्या :
भावार्थ- यहाँ पर छान्दोग्योपनिषद् के उस विषय के प्रमाण को प्रस्तुत करके जहाँ जान-श्रुति पोत्रायण नाम राजा रैक्व मुनि के निकट विद्या के लिये जाता है और रैक्व मुनि उसको शूद्र को ब्रह्माविद्या का अधिकार नहीं; परन्तु प्रश्न उत्पन्न होता है कि विदुर वगेरह शूद्रकुल में उत्पन्न होकर ज्ञानी हुए हैं; फिर किस तरह शूद्र को ब्रह्मा-विद्या का अधिकार नहीं?
प्रश्न- जानश्रुति तो चख्यि राजा था; उसको रैक्व मुनि ने शूद्र क्यों कहा?
उत्तर- एक तो वह हंस से शूद्र शब्द सुनकर ही रैक्व मुनि के पारा गया था। मुनि ने इस बात को जतलाने के कारण कि वह हंसवाली घटना से अवगत (खबरदार) है, उसको शूद्र कहा; दूसरे जानश्रुति गौ आदि धन के बदले विद्या की इच्छा करता था, इस बात को जतलाने के कारण कि यूँविद्या नहीं मिलती; किन्तु विद्या गुरू-भक्ति और सेवा से प्राप्त होती है।
प्रश्न- क्या शूद्र को वेद और वेदान्त के पाठ का अधिकार नहीं?
उत्तर- क्योंकि जिसका उपनयन और वेदारभ-संस्कार न हुआ हो, उसको ब्रह्माविद्या का अधिकार नहीं, शूद्र उसको कहते हैं कि जो उपनयन संसकार से रहित हो। ब्रह्मा-विद्या का अधिकार उस मनुष्य को नहीं हो सकता, जोकि व्रत से शून्य है।
प्रश्न- वेद में तो चारों वर्णों को वेद पढ़ने का अधिकार दिया गया है।
उत्तर- चारों वर्णों की सन्तान को व्रतबन्ध अर्थात् उपनयन और वेदारम्भ-संस्कार कराकर ही वेद-पठन का अधिकार है; बिन उसके नहीं; क्योंकि वेद वा ब्रह्मा और विद्याओं के पढ़ने के पश्चात् ही आ सकती है। जिस मनुष्य ने वेदांग और उपांग को उचित ढंग पर नहीं समझा, उसको वेद का अर्थ कभी समझ में नहीं आ सकता; इस कारण महर्षि कपिल ने भी कहा था कि जो लोक अर्थात् अंग-उपांग को उचित प्रकार जानता है, उसीको वेदारम्भ का ज्ञान हो सकता है।
प्रश्न- फिर जानश्रुति को रैक्व मुनिने क्यों पढ़ाया?