सूत्र :भावं तु बादरायणोऽस्ति हि 1/3/33
सूत्र संख्या :33
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : पदार्थ- (भावन्तु) देवताओं का अधिकार है (वादरायणः) व्यासजी के मन में (अस्ति) है (हि) निश्चय करके; यकीनन।
व्याख्या :
भावार्थ- यद्यपि मधु आदि विद्या में देवतों के असम्भव होने से अधिकार नहीं; परन्तु अ्रह्य-विद्या में अधिकार है; ऐसा व्यासजी मानते हैं; क्योंकि किसी एक वस्तु में अधिकार न होना सब स्थान के अधिकार को नहीं रोकता; जैसे-ब्राह्यण वर्ण के मनुष्य राजुसूर्य यज्ञ करने का अधिकार नहीं रखते; क्योंकि यह अधिकार केवल क्षत्रिय वर्ण को है क्या राजसूर्य यज्ञ में अधिकार न होने से ब्राह्यणों को और यज्ञ करने में भी अधिकार नहीं; परन्तु और यज्ञों में ब्राह्यणों को अधिकार दिया गया है। इसी प्रकार मधुविद्या में देवताओं को अधिकार न होने पर भी ब्रह्मा-विद्या में उनको अधिकार है; क्योंकि श्रृति ने भी बतलाया है, जिसने देवतों में से जाना, जिसने ऋषियों में से और जिसने मनुष्यों में से जाना।
प्रश्न- जबकि वह सूर्य ज्योति अर्थात् प्रकाश से अर्थ है, तो अचेतन वस्तु को ज्ञान का अधिकार कैसे हो सकता है?
उत्तर- यद्यपि ज्योति आदि शब्द भी सूर्य आदि देवताओं के लिये कहे जाते हैं; परन्तु उनमें अभिमानी चेतन स्वीकार किया जाता है। जैसे परमात्मा को ज्योतिःस्वरूप कहने से वह अचेतन नहीं हो जाता, ऐसे ही चन्द्र आदि देवताओं को अचेतन मानकर भी उसका अभिवानीवा उसमें रहनेवाला चेतन पुरूष स्वीकार करना पड़ता है; तिः वह अधिकार उस चेतन के कारण ही हो सकता है, अचेतन के लिये नहीं।
प्रश्न- क्या मनुष्यों को ब्रह्माविद्या का अधिकार नहीं अर्थात् शूद्र को वकदान्त का अधिकार नहीं?