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वेदान्त-दर्शन-COLLECTION OF KNOWLEDGE
DARSHAN
दर्शन शास्त्र : वेदान्त-दर्शन
 
Language

Darshan

Adhya

Shlok

सूत्र :श्रवणाध्ययनार्थप्रतिषेधात् स्मृतेश् च1/3/38
सूत्र संख्या :38

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती

अर्थ : पदार्थ- (श्रवणाध्ययनार्थ) सुनने पढ़ने और विचारने का (प्रतिषेधात्) नहीं अर्थात् आज्ञा रोक देने से (स्मृतेः) धर्मशास्त्र में (च) भी।

व्याख्या :
भावार्थ- क्योंकि धर्मशास्त्र ने शूद्र को वेद के पढ़ने, सुनने और अर्थ विचार करने को मना किया है; किंतु स्मृति ने इसके कारण दण्ड भी नियत किया है। प्रश्न- जबकि वेद सूर्य की भाँति सार्वभौम हैं, तो शुद्र को इसका क्सों अधिकार नहीं? उत्तर- जिस प्रकार सूर्य सबके लिये है; परन्तु उल्लू, कचमगादड़, अन्धे और जिनके चक्षु में रोग है, उनके लिये नहीं; ऐसे ही जो वेद के पाठ के लिये उपनयन, वेदारम्भ संस्कार और ब्रह्माचर्य आश्रम धारण नहीं करता अथवा जो सत्य नहीं बोलता, जिसका वर्ण अनपढ़ होने के कारण शुद्ध शब्दों का उच्चारण नहीं कर सकता, ऐसे मनुष्य का नाम शूद्र है। उसको वेद प्ढ़ने का अधिकार देना, प्रज्ञाचक्षु को सूर्य दिखाना है। जिनके संस्कार हो चुके हों, वह चाहे किसी कुल में उत्पन्न हुए हों, उनको पढ़ने का अधिकार है; परन्तु सत्य का अभाव उपनयन आदि संस्कारों से रहित, अनपढ़ शूद्र को वेद पढ़ने का अधिकार नहीं। प्रश्न- कठ शाखा में जो बतलाया है कि यह जो सर्व जगत् प्राणान्त, परिकम्पित और निलते समय अधिक भीति होती है और वज्र गिरता है, जो उसकों जानता है, वह मुक्त हो जाता है। उस समय भय देनेवाला कौन है? प्राण परमात्मा का ही नाम है पंच प्रकार वायु का।