सूत्र :मध्वादिष्व् असंभवाद् अनधिकारं जैमिनिः 1/3/31
सूत्र संख्या :31
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : पदार्थ- (मध्वादिषु) विद्याओं के नाम हैं, जो उपनिषदों में बतलाये हैं (असम्भवात्) होने से (अनधिकारम्) अधिकार देवतों को नहीं (जैमिनिः) जैमिनि आचार्य मानते हैं।
व्याख्या :
भावार्थ- जैमिनि आचार्य जो कि व्यासजी के शिष्य हैं, यह कहते है कि देवतों को ब्रह्मा-विद्या अर्थात् परमात्मा को जानने का अधिकार नहीं; इसके लिये वह यह युक्ति देते हैं कि उपनिषदों में बतलाये हुए मधुविद्या आदि देवतों में होनी असम्भव है। इस कारण ब्रह्मा-विद्या में उनको अधिकार नहीं।
प्रश्न- मध्वादि विद्याओं में देवतों को क्यों अधिकार नहीं।
उत्तर- वहाँ बतलाया गया है कि आदित्य अर्थात् सूर्य मधु है, उसकी उपासना कर। अब सूर्य मधु बतलाया है। यदि सूर्य के कारण सूर्य को मधु बतलाकर उपासना बतलाई जावे, तो आत्माश्रय दोष होने से असम्भव है। यदि सूर्य के कारण दूसरा सूर्य और उसके लिये तीसरे सूर्य स्वीकार किया जावे, तो प्रवाह का दोष आता है। यदि इस सूर्य के कारण यह सूर्य स्वीकार किया जावे, तो अन्योन्याश्रय दोष होता है; इस कारण किसी प्रकार स्वीकार करे, सूर्य आदि देवतों को मधु आदि विद्याओं में अधिकार असम्भव होने से अधिक नहीं। जब मधु आदि विद्याओं में सूर्य आदि का अधिकार नहीं, तो ब्रह्मा-विद्या में कैसे हो सकता है; यह जैमिनि जी का मत है।
प्रश्न- देवताओं को ब्रह्मा-विद्या में क्यों अधिकार नहीं?