DARSHAN
दर्शन शास्त्र : वेदान्त-दर्शन
 
Language

Darshan

Adhya

Shlok

सूत्र :अत एव च नित्यत्वम् 1/3/29
सूत्र संख्या :29

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती

अर्थ : पदार्थ- (अतः) इस कारण से (एव) ही (च) और (नित्यत्वम्) वेदों को नित्य सिद्ध किया गया है।

व्याख्या :
भावार्थ- क्योंकि भूमण्डल की वस्तुयें जो गौणिक नाम रखती हैं, वे सब वेदों में विद्यमान हैं और प्रत्येक जगत् की वस्तु के ज्ञान का बीज अर्थात् कारण हैं; इसलिये वेद नित्य हें। वेद में सब नाम गौणिक हैं, इसी कारण वेद के शब्दों से ही जगत् की उत्पत्ति आचार्य लोग मानते हैं। व्यास स्मृति में भी लिखा है कि पूर्वकल्प अर्थात् ब्रह्मा दिन के अन्त में जो सृष्टि के प्रारम्भ से अन्तःकरण में ईश्वरीय प्रेरणा के साथ महर्षियों ने प्रथम तप से प्राप्त किया, तो ऋषि बिना माता-पिता के स्वयम् उत्पन्न होते हैं।2 प्रश्न- प्रथम सिद्ध कर चुके हैं कि ईश्वर वेदों का कत्र्ता है; अब उसको नित्य बतलाते हैं; इस कारण यह बात उचित नहीं; क्योंकि जो वस्तु उत्पन्न हो, वह नित्य नहीं हो सकती। उत्तर- निश्चय वेद नित्य हैं; क्योंकि ईश्वर का ज्ञान होने से अर्थात् जो ईश्वर का गुण है, वह अवश्य ही नित्य होगा; क्योंकि गुण और गुणी का नित्य सम्बन्ध होता है, अर्थात् गुण के बिना और गुणी के बिना गुण नहीं हो सकता। इस कारण अवश्य समावाय सम्बन्ध होने से जब से ईश्वर है, तब से वेद हैं; क्योंकि ईश्वर नित्य है; इस कारण उसका गुण वेद भी नित्य है। प्रश्न- फिर ईश्वर को वेदों का कत्र्ता व आदि मूल क्यों कहा? उत्तर- क्योंकि ईश्वर का ज्ञान अनन्त है। उसमें से जीव की मुक्ति के हेतु जितने ज्ञान की आवश्यकता है, उसको परमात्मा ने अपने अनन्त ज्ञान से पृथक् करके दिया हैं पृथक करने के कारण ईश्वर को वेदों का कत्र्ता बतलाया है। जितने मनुष्यों को ज्ञान हो सकता है, उसका बीज वेद है। वेद से अतिरिक्त कोई ऐसी बात नहीं कि जिसका जानना मुक्ति के लिये आवश्यक हो। प्रश्न- वेद को ईश्वर के बनाये हुए वा उसका ज्ञान होने में क्या प्रमाण है; क्योंकि हम तो सुनते हैं कि वेद ऋषियों के बनाये हैं। उत्तर- जो प्रमाण सूर्य को ईश्वर का बनाया हुआ होने में है, जिस प्रकार कोई मनुष्य नहीं बना सकता; क्योंकि सर्व प्रकाश का मूल है। बीज से वृक्ष उत्पन्न करना, तो मनुष्य जानता है और उससे दूसरे बीज भी उत्पन्न हो जाते हैं। प्रथम बीज कोई मनुष्य नहीं बना सकता, और न बिना बीज अर्थात् कारण के कोई कार्य (मालूम) बन सकता है। एकसक ही यदि परमात्मा विद्या को सूर्य वा मूल मनुष्यों को न प्रदान करता, तो किसी दशा में भी सृष्टि में दीपक और लैम्प की भाँति ज्ञान और धर्म-पुस्तकें रची नहीं जा सकती थीं। प्रश्न- वेदविद्या के सूर्य होने में क्या प्रमाण है? उत्तर- युक्ति से जिस प्रकार प्रत्येक मनुष्य जानता है कि रात्रि और दिन के भेद का कारण सूर्य होने से वेदज्ञान चक्षुओं के लिये परमात्मा ने सूर्य रूप बनाया है। जब तक सूर्य प्रकाश रहता है, तब तक वहाँ दिन कहलाता है; जब तक सूर्य का प्रकाश बिना किसी बाह्य आवरण के छिपा रहता है, उस अवस्था का नाम रात्रि होता है। ऐसे ही जब तक वेद का सूर्य रहता है, तब तक ब्रह्मा दिन अर्थात् सृष्टि कहलाती है। इसलिये वेद आत्मज्ञान का सूर्य और सूर्य (माद्दी) स्थूल चक्षुओं के कारण परमात्मा ने बनाया है। प्रश्न- क्योंकि यह बात प्रत्येक मनुष्य जानता है कि सूर्य किसी देश के अन्दर नहीं; किन्तु सब देश से पृथक् है; परन्तु दीपक प्रत्येक गृह में होता है। ऐसे ही जितनी और वस्तुयें हैं, किसी न किसी देश की भाषा में हैं और वेद किसी देश में नहीं, जिससे उसका प्रत्येक गृह में पृथक् होना प्रकट है। उत्तर- प्रत्येक मनुष्य की बनाई हुई पुस्तक में मनुष्य की रियाअत पाई जाती है और वेद में किसी मनुष्य की रियाअत नहीं। इस पर सैकड़ों युक्तियाँ हैं कि वेद ईश्वरीय ज्ञान है; परन्तु यह बात तो सबको मालूम है कि यदि पृथ्वी, उसका मानचित्र और भूगोल तीनों एक स्थान पर मिल जावें, तो फिर किसी को भूगोल अशुद्ध होने की शंका नहीं रहती। इसी प्रकार वेद है। सृष्टि का भूगोल, मनुष्य का शरीर ब्रह्याण्ड का चित्र, सब जगत् पृथ्वी मान लो और वेद की शिक्षा ईश्वरीय नियम के साथ बराबर समता रखता है, जिससे उसका ईश्वरीय ज्ञान होना पाया जाता है। प्रश्न- जबकि प्रत्येक सृष्टि में और वेद का नाश होना मानते हो, तो वह नित्य कैसे हो सकता है?

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