सूत्र :तदुपर्य् अपि बादरायणः संभवात् 1/3/26
सूत्र संख्या :26
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : पदार्थ- (तत्) मनुष्य से (उपय्र्यपि) मनुष्य से ऊपर वालों के कारण भी (वादरायणः) व्यास के मत से (सभवात्) सम्भव होने से।
व्याख्या :
भावार्थ- मनुष्य से ऊपर जो देवता आदि हैं, उनको भी परमात्मा के दर्शन का अधिकार है; ऐसा व्यासजी मानते हैं।
प्रश्न- यदि देवताओं के शरीर मनुष्य से बड़े व छोटे होते होंगे, तो उसके हृदयकाश अँगूठे के बराबर नहीं रहेंगे?
उत्तर- जिस प्रकार छोटे-बड़े मनुष्यों में उनके अँगूठे के बराबर हृदयकाश हैं, ऐसे ही देवतों के शरीर में उनके अँगूठे के बराबर हृदयकाश होंगे।
प्रश्न- क्या देवतों का शरीर है, जो उनको अँगूठे के बराबर उनका हृदयकाश स्वीकार किया जावे?
उत्तर- सब शास्त्रों, वेदों और उननिषदों से देवता मूर्तिमान सुने जाते हैं और उनके ब्रह्माचर्य धारण करके पठनादि का समाचार सुधार स्पष्ट प्रकट है कि जिसको ब्रह्माचारी बनकर पढ़ने का अधिकार है, उसको परमात्मा के जानने का अधिकार है?
प्रश्न- क्या देवताओं को भी देवताओं की पूजा का अधिकार है?
उत्तर- देवताओं का महादेवता परमात्मा है उसकी पूजा का तो अधिकार है; परन्तु उनका कोई मूर्तिमान देवता नहीं और और न ऋषियों का कोई ऋषि ही हैं। इस कारण देवता-कर्मकाण्ड जिसमें देवऋषि तर्पण भी सम्मिलित है उससे परे हैं।
प्रश्न- यदि देवताओं को मूर्ति अर्थात् शरीर स्वीकार करोगे, तो कर्म में विरोध आयेगा, जैसे-एक ही समय में दो विरूद्ध स्थानों पर यज्ञ हुए हों, तो देवता कैसे जा सकेंगे?