सूत्र :अपि च स्मर्यते 1/3/23
सूत्र संख्या :23
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : पदार्थ- (अपि) भी (च) और (स्मय्यैते) स्मृति ने भी दिखलाया है।
व्याख्या :
भावार्थ- ऐसा और भी स्मृति ने बतलाया है कि आत्मा ही ऐसा हो सकता है कि जो भीतर प्रकाश करे, जिसके प्रकाश से सब सूर्य, चन्द्र और तारे प्रकाशित हों। गीता में लिखा है कि न तो उसको सूर्य प्रकाशित करता है, न चन्द्र और न अग्नि। जिसको प्राप्त होकर नहीं लौटते हैं, वह परम धाम मेरा है1 और भी कहा है कि जो सूर्य का तेज सब जगत् को प्रकाश देता है और जो अग्नि में प्रकाश है; वह सक मेरा तेज है।
प्रश्न- यह बतलाया गया है कि अँगूठे के समान पुरूष आत्मा के भीतर रहता है1 अँगूठे के बराबर घूम से रहित ज्योति की भाँति है और वह भूत और भविष्यत् का स्वामी है; अब अँगूठे के बराबर पुरूष बतलाया है, यह जीवात्मा है वा परमात्मा है?