DARSHAN
दर्शन शास्त्र : वेदान्त-दर्शन
 
Language

Darshan

Adhya

Shlok

सूत्र :अनुकृतेस् तस्य च 1/3/22
सूत्र संख्या :22

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती

अर्थ : पदार्थ- (अनुकृतेः) अनुमान करने के कारण (तस्य) उसके (च) भी।

व्याख्या :
भावार्थ- यह जो बतलाया गया है कि उस स्थान पर सूर्य प्रकाश नहीं करता और और न चन्द्रमा और न तारागण प्रकाश करते हैं; और न विद्युत प्रकाश् करती है; पुनः यह अग्नि अर्थात् दीपक लैम्प और गैस का प्रकाश किस प्रकार प्रकाश करती है। उसी परमात्मा के प्रकाश से यह सब प्रकाश करते हैं। यहां पर स्पष्ट प्रकट है कि जब सूर्य आदि के प्रकाश का निषेध हो गया, तो केवल जीव और परमात्मा दो शेष रह जाते है; परन्तु जीव परमाणुओं से नहीं कार्य कर सकता, जो उनको मिलाकर प्रकाश दे सके; निदान परमात्मा के अनुमान के कारण ही यह श्रुति है। प्रश्न- उस स्थान पर सूर्य और चन्द्रादि क्यों नहीं प्रकाश करते? उत्तर- सूक्ष्म पदार्थ के भीतर स्थूल पदार्थ गुण प्रवेश नहीं हो सकते; जीव प्रकृति से सूक्ष्म है और सूर्यादि प्रकृति के सतोगुण से बने हुए हैं; इस कारण न तो यह स्वंय भीतर जा सकते हैं और न उनका प्रकाश जीव के भीतर प्रवेश हो सकता है। इस कारण जीव के भीतर प्रकाश करनेवाला परमात्मा ही है; क्योंकि सुर्यादि सब संयोगजन्य अर्थात् कर्ता से रचित हैं और वे क्रिया से उत्पन्न होते हैं। इस उपाय का कारण है; इस कारण स परमात्मा के कारण से ही प्रकाश होते हैं। यदि परमात्मा उनको संयुक्त न करे अर्थात् न रचे, तो कुछ भी प्रकाश नहीं दे सकती। जिस प्रकार घड़ी के भीतर जो चेष्टा होती है, वह घड़ीसाज के प्रबंध से होती है। बनी घड़ी में वहीं सुई और पीपल के पुरजे होते हैं। प्रश्न- क्या अग्नि के परमाणु स्वयं प्रकाश नहीं कर सकते? उत्तर- परमाणुओं के अंदर जो प्रकाश है, वह इस योग्य नहीं कि उसको कोई देख सके। जबकि यह अपने आपको नहीं दिखला सकती, तो औरों को किस प्रकार प्रकाश कर सकती है। निदान परमात्मा परमाणुओं को चेष्टा देकर सूर्य, चन्द्र, तारे और विद्युत की आकृति में लाते है। ऐसे ही और भी जितनी वस्तुयें हैं, उनके भीतर जो प्रकट होने की शक्ति है, वह सक ब्रह्मा ही से होती है। प्रश्न- जिस प्रकार चन्द्र, तारे आदि सूर्य के प्रकाश से प्रकाश करते है; ऐसे ही सूर्य किसी दूसे सूर्य से प्रकाशित होते हैं; क्योंकि सूर्य अनेक हैं। उत्तर- यदि इस सूर्य को किसी दूसरे सूर्य से, उसको तीसरे सूर्य से प्रकाशित होना स्वीकार किया जावे, तो अन्यवस्था अर्थात् प्रवाह दोष होगा। विज्ञान चेतन आत्मा के प्रकाश से ही यह सब प्रकाश करते हैं; ऐसा मानना उचित है। इसके और युक्ति देते हैं।

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