DARSHAN
दर्शन शास्त्र : वेदान्त-दर्शन
 
Language

Darshan

Adhya

Shlok

सूत्र :अन्यार्थश् च परामर्शः 1/3/20
सूत्र संख्या :20

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती

अर्थ : पदार्थ- (अन्यार्थः) दूसरे अर्थ के कारण (च) भी (परामर्शः) कमा विचार है।

व्याख्या :
भावार्थ- उपनिषद् के भीतर जो ब्रह्मा पिता का विचार जीव के भीतर रखता है, वह समाधि, सुषुप्ति और मुक्ति में जब जीव के भीतर ब्रह्मा के गुण आ जाते हैं, उस अवस्था का नाम ब्रह्मारूपता है। और उसके योग्य है; परन्तु उस समय जीव आनन्द का भोगता और दुःख से रहित होता है; परन्तु उस समय भी जीव में अपने गुण अल्पज्ञता और शांत होना आदि विद्यमान रहते है और जो कर्म सर्वज्ञ परमात्मा के हैं, वही नहीं कर सकता है। इस कारण दहर आकाश से अर्थ ब्रह्मा का ही लेना उचित है न कि बंधन में फँसा हुआ जीव उसके योग्य है, न मुक्त जीव। यद्यपि मुक्ति में आनन्द गुण विद्यमान है; परन्तु सर्वज्ञता और सर्वव्यापकता उस समय भी विद्यमान नहीं होती; निदान जीव के पापों से रहित आदि जहाँ कहीं उससे वह दुःख आदि से रहित अविद्या से शून्य होने के कारण कहा गया है, उससे वह सर्वज्ञ और सर्वव्यापक ब्रह्मा के कर्म नहीं कर सकता। इस कारण दहर आकाश से प्रयोजन ब्रह्मा का है। प्रश्न- श्रुति का ब्रह्मा का एक शांत स्थान परमात्मा उचित नहीं ज्ञान होता।

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