सूत्र :धृतेश् च महिम्नोऽस्यास्मिन्न् उपलब्धेः 1/3/16
सूत्र संख्या :16
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : पदार्थ- (धृतेः) धारण करनेवाला होने (च) और (महिम्नः) महिमा के (अस्य) उसकी (अस्मिन्) उसके भीतर (न) नहीं (उपलब्धेः) पाये जाने से।
व्याख्या :
भावार्थ- आकाश के भीतर उस परमात्मा की महिमा अर्थात् उसके गुण नहीं पाये जाते। परमात्मता सब जगत् का धारण करनेवाला है; आकाश धारण करनेवाला नहीं है। परमात्मा से जीवात्मा आनन्द को प्राप्त करता है; आकाश से जीव का आनन्द नहीं मिल सकता। उसी प्रकार जो गुण श्रुति ने उस ‘‘दहर’’ के बतलाये हैं, वह भूताकाश के भीतर विद्यमाननहीं; निदान परमात्मा ही लेना पड़ता है। इन लक्षणों को यदि दूसरे स्थान पर खोज करें, तो मिल ही नहीं सकते; जैसा कि प्रथम सिद्ध कर चुके हैं कि जगत् को उत्पन्न करनेवाला व आनन्दस्वरूप आदि कोई दूसरा नहीं; अतः परमात्मा ही आचार्य लोग लेते हैं, इस पर और युक्ति देते हैं।