सूत्र :गतिशब्दाभ्यां तथा हि दृष्टं लिङ्गं च 1/3/15
सूत्र संख्या :15
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : पदार्थ- (गति शब्दाभ्याम्) ज्ञान, चलना और प्राप्ति अर्थात् प्राप्त होना तथा शब्द प्रमाण से (तथा) ऐसे ही (हि) निश्चय से (दृष्टं लिंगम्) प्रकट है चिन्ह (च) भी।
व्याख्या :
भावार्थ- नित्य प्रति जीव निद्रावस्था में अपने भीतर उस परमात्मा को प्राप्त करके सुख भोगते हैं; क्योंकि इस समय परमात्मा से सुख लेते हुए भी अज्ञान के कारण उसके स्वरूप को नहीं जानते; अतः पुनः जाग उठते हैं। इस जाने-आने से ज्ञात होता है कि भीतर ब्रह्मा है; जिसको जानने अथवा खोज करने की आवश्यकता है। यदि ज्ञान होता, तो उस सुख को प्राप्त करके जीव पुनः दुःखों की ओर वापस न आते। दूसरे-जीव के भीतर जो आकाश है, उसी का नाम ब्रह्मालोक प्रसिद्ध है; और सर्व संसार का धारण करनेवाला बताया है। जो ब्रह्मा का प्रत्यक्ष लिंग है; क्योंकि सब वस्तुयें तों जगत् के अन्तर्गत हैं उनको धारण करनेवाला ब्रह्मा ही हो सकता है।