DARSHAN
दर्शन शास्त्र : वेदान्त-दर्शन
 
Language

Darshan

Adhya

Shlok

सूत्र :दहर उत्तरेभ्यः 1/3/14
सूत्र संख्या :14

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती

अर्थ : पदार्थ- (दहरः) परमात्मा है (उत्तरेभ्यः) आगे की युक्तियों से अर्थ आगामी युक्तियों से।

व्याख्या :
भावार्थ- आगामी युक्तियों से सिद्ध है कि दहर से अर्थ वहाँ परमात्मा का है; आकाश और जीवात्मा का नही। प्रश्न- उस श्रुति में जो ब्रह्मापुर बतलाया है, उससे प्रयोजन है? ब्रह्मा का पुर हो ही नहीं सकता; क्योंकि पुर के एक देश में राजा रहा करता है। यदि ब्रह्मापुर से अर्थ शरीर लिया जावे, तो उचित नहीं; क्योंकि शरीर के एक देश में ब्रह्मा रह नहीं सकता। वह सारे संसार में व्यापक ही नही; किन्तु संसार रो चौगुना है, इस कारण यहाँ पर जिसका पुर है, वह जीव ही लेना उचित है। उत्तर- निश्चत ब्रह्मा सर्वव्यापक है और जगत् उसके एक देश ही में रहता है; परन्तु ब्रह्मापुर का अर्थ मनुष्य-शरीर ही है; क्योंकि जिस प्रकार पुर के एक देश में राजा निवास करता है, उसी प्रकार मनुष्य-शरीर में हृदय अकाश है; उसमें ही परमात्मा के दर्शन होते हैं परमात्मा के देखने का स्थान मनुष्य-शरीर का नाम ब्रह्मापुर है। प्रश्न- ब्रह्मापुर का दर्शन और किसी स्थान पर नहीं हो सकता; केवल उसके देखने के कारण एक स्थायी स्थान है? उत्तर- जिस प्रकार सूर्य का आभास प्रत्येक स्थान पर पड़ता है, परन्तु देखने के लिये स्पष्ट दर्पण वा जल की आवश्यकता है; इसी प्रकार ब्रह्मा के व्यापक होने पर भी जीव उसको मन के दर्पण के भीतर से ही देख सकता है। इस कारण शरीर का नाम ब्रह्मापुर रखा है। प्रश्न- आकाश से यहाँ अर्थ ब्रह्मा का है वा भृत आकाश का? उत्तर- श्रुति ने तलाया है कि जितना बड़ा यह आकाश है, उतना ही महान् हृदय के भीतर आकाश है। यदि हृदयाकाश का अर्थ भूताकाश होता, तो उसकी उपमा आकाश से नहीं दी जाती; क्योंकि उपमा जिसके साथ दी जाती है, वह स्वरूप से पृथक् हुआ करता है; दोनों एक नहीं होते। इस कारण यहाँ ‘‘दहर’’आकाश से अर्थ परमात्मा का है, वही जानने योग्य और छान-बीन करने योग्य है। प्रश्न- क्या एक ही आकाश के भीतर बाहर के भेद के कारण दो जानकर उपमा नहीं दे सकते? यदि दी जा सकती, तो भूत आकाश ही हैं। उत्तर- भीतर का आकाश अणु परिमाणवाला है और बाहर का महत परिमाणवाला है; निदान भीतर-बाहर के भेद ये यह उपमा दी हुई सिद्ध नहीं होती; क्योंकि उपमा जहाँ दी जाती है, वहाँ एक सी आकृति होनी आवश्यक है, जो भीतर और बाहर के आकाश में पाई नहीं जाती। इस कारण भूताकाश नही मान सकते; किन्तु ब्रह्मा ही मानना पड़ता है। प्रश्न- जिन अगली युक्तियों के कारण ‘दहर’ ब्रह्मा ही है, वह कौनसी हैं?

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