सूत्र :अक्षरम् अम्बरान्तधृतेः 1/3/10
सूत्र संख्या :10
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : पदार्थ- (अक्षरम्) परमात्मा ही अक्षर है (अम्बरान्त धृतेः) पृथ्वी से आकाश पर्यन्त सबको धारण करनेवाला होने से।
व्याख्या :
भावार्थ- क्योंकि पृथ्वी आदि प्रत्येक भूत को धारण किये हुए है और उसी के सहारे सब जगत् चल रहा है; इस कारण अक्षर से प्रयोजन यहाँ परमात्मा ही है।
प्रश्न- अक्षर नाम वर्णों (हरफों) का है और वर्ण एक शब्द के अन्दर माला के मनके के समान विद्यमान हैं; इस कारण अक्षरों को ही उस स्थान पर मानना उचित है।
उत्तर- अक्षरों से ही शब्द बने हुए हैं अर्थात् शब्दारूपी जो माला है, उसके मनके अक्षर हैं; परन्तु वह पिरोये हुए किसमें हैं? यह सिद्ध नहीं होते; इस कारण अक्षरों का अर्थ उस स्थान पर अक्षर शब्दों से नहीं, किन्तु परमात्मा ही अक्षर शब्द लेना उचित है; क्योंकि पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश के भीतर व्यापक होने से जिस प्रकार सूत्र माला के मनकों को स्थिर रखता है, जिससे वह कंठ में अपने-अपने स्थान पर स्थित रहते हैं; ऐसे ही परमात्मा सब वस्तुओं को अपने-अपने स्थान पर स्थिर रखता है।
प्रश्न- पृथ्वी से आकाश पर्यन्त करनेवाली प्रकृति भी है; इसमें ब्रह्मा ही क्यों समझे?