सूत्र :अन्यभावव्यावृत्तेश्च 1/3/12
सूत्र संख्या :12
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : पदार्थ- (अन्यभाव) दूसरी सत्ता (व्यावृत्तेः) पृथक् की जाने से (च) भी।
व्याख्या :
भावार्थ- पृथ्वी से आकाश पर्यन्त धारण करने का गुण परमात्मा को दूसरी सत्ताओं से पृथक् करनेवाला है। ऐसी कोई सत्ता विद्यमान नहीं कि जो पृथ्वी से आकाश पर्यन्त व्यापक होकर उनको नियम में चला सके; इस कारण यह दोनों सूत्र परमात्मा को दूसरी सत्ताओं से पृथक् करके इस बात को सिद्ध करते हैं कि अक्षर ब्रह्मा ही का नाम है। ब्रह्मा से पृथक् करके इस बात को सिद्ध करते हैं कि अक्षर ब्रह्मा ही का नाम है। ब्रह्मा से पृथक् कोई पदार्थ इस स्थान पर ‘अक्षर’ नहीं समझा जाता है यद्यपि दूसरे स्थानों पर अक्षर के और भी अर्थ है; परन्तु यहाँ केवल परमात्मा लेना उचित है।
प्रश्न- जबकि उपादन कारण के सहारे कार्य की सत्ता होती है, यदि कारण न रहे, तो वह कार्य रह भी नहीं सकता; इस कारण दोनों सूत्रों में प्रकृति लेने में क्या दोध है?
उत्तर- श्रुति ने प्रकृति से उस सत्ता को पृथक् कर दिया है; क्योंकि बतलाया है कि ऐ गार्गी! वह अक्षर देखनेवालों से विचार किया हुआ और जाननेवालों से जाना हुआ नहीं है । यह बातें प्रकट करती हैं कि अक्षर परमात्मा है। ऐसी दूसरी सत्ता नहीं, जिसको देखने, सुनने व विचार करने और जानने के कारण न देख, सुन व विचार कर सके, न जान सके।
प्रश्न- प्रश्नोपनिषद् में सत्य काम को उपदेश करते हुए, जो दो प्रकार से ब्रह्मा बताया है। एक अपर ब्रह्मा, दूसरा पर ब्रह्मा उसमें ओंकार के द्वारा ब्रह्मा का ध्यान लिखा है; इसमें पर ब्रह्मा निर्गुण परमात्मा से प्रयोजन है या सगुण ब्रह्मा से?