DARSHAN
दर्शन शास्त्र : वेदान्त-दर्शन
 
Language

Darshan

Adhya

Shlok

सूत्र :सा च प्रशासनात् 1/3/11
सूत्र संख्या :11

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती

अर्थ : पदार्थ- (सा) वह सब लोगों की धारित्री (च) है (प्रशासनात्) नियम में चलाने से।

व्याख्या :
भावार्थ- यह सिद्ध हो चुका है कि प्रकृति नियमानुसार चलनेवाली तो हो सकती है, चलानेवाली नहीं हो सकती और अक्षर के लक्षण में यह भी बताया गया है कि ऐ गार्गी! इसी अक्षर के नियम में सूर्य अथवा चन्द्र स्थित है । नियम में बाँधे रखना सृष्टि के स्वामी परमात्मा ही की कर्म है; ज्ञानरहित प्रकृति का कर्म नहीं और काम ही अल्पज्ञ जीव का कर्म है। प्रश्न- सूर्य और चन्द्र तो अपनी आकषर्ण शक्ति से स्थित हैं, इसमें परमात्मा को क्या दखल है? उत्तर- यदि कोई मनुष्य घड़ी को चलता हुआ देखकर यह कहे कि घड़ी के पुरजे एक-दूसरे के आकर्षण से चल रहे हैं, तो मूर्खजन स्वीकार कर सकते हैं; परन्तु बुद्धिमान मनुष्य जानता है कि पुर्जों के अन्दर यह नियम घड़ीसाज ने बनाया है और इसाके चाभी देने से कार्य चल रहा है। ऐसे ही यद्यपि उस समय सूर्य, चन्द्र और पृथ्वी आदि आकर्षण शक्ति से घूम रहे हैं; परन्तु यह सब नियम परमात्मा ने ही चलाये हैं; इस कारण वही उनको चलानेवाला है। इस पर और युक्ति देते हैं कि इस स्थान पर ब्रह्मा ही का नाम है।

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