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वेदान्त-दर्शन-COLLECTION OF KNOWLEDGE
DARSHAN
दर्शन शास्त्र : वेदान्त-दर्शन
 
Language

Darshan

Adhya

Shlok

सूत्र :भूमा संप्रसादाद् अध्युपदेशात् 1/3/8
सूत्र संख्या :8

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती

अर्थ : पदार्थ- (भूमा) परमात्मा है (सम्प्रसादात्) सारे जगत् में व्यापक होने से (अध्युपदेशात्) सबका आधार बतलाया जाने से।

व्याख्या :
भावार्थ- परमात्मा का नाम भमा है; क्योंकि वह सारे जगत् में फैला हुआ अर्थात् व्यापक और पदार्थों के भीतर विद्यमान है। प्रश्न- भूमा किसे कहते हैं? उत्तर- जहाँ न और को देखे, न और को सुने; और न और को जाने, वह भूमा है; क्योंकि परमात्मा के भीतर सब वस्तु सें हैं और वह सबके भीतर व्यापक है; इस कारण जहाँ जाकर देखो, वहीं परमात्मा को विद्यमान पाओगे। कोई भी पर्वतों की उच्च से शिखर, अन्धकार से अन्धकार गार अथवा समुद्र की गहरी से गहरी तह, परमात्मा से शून्य नहीं मिलेगी; कोई छोटे से छोटा जीव भी परमात्मा से शून्य नहीं; इस कारण भूमा परमात्मा है और जिन श्रुतियों में भूमा की उपासना का उपदेश किया, उसका प्रयोजन परमात्मा ही की उपासना से है। प्रश्न- क्या जीव का नाम भूमा नहीं हो सकता? उत्तर- जीव अनन्त हैं; इस कारण जीव एक शरीर में है, दूसरे में वह नहीं; किंतु दूसरा है, इसलिये जीव में भूमा के लक्षण नहीं पाये जाते; इसकारण जीव अन्पज्ञ है; क्योंकि अल्प है। प्रश्न- क्या प्राण भूमा नहीं कहला सकते; क्योंकि वह बहुत है और सारे संसार में व्यापक हैं? उत्तर- क्योंकि बतलाया गया है कि आत्मा का जाननेवाला दुखों से तर जाता है और उस प्रकरण में भूमा की उपासना लिखी है; इस कारण परमात्मा ही भूमा है, प्राण नहीं। भूमा से अर्थ एक होकर सब जगह व्यापक होने वाला है। जाति से भूमा को व्यापक नहीं कह सकते। प्रश्न- क्या प्राण भूमा नहीं, जबकि प्राणों के नियम जानने से मनुष्य तर जाता है अर्थात् जो मनुष्य प्राणायाम से मन को रोकता है, उसे सुख मिलता है और भूमा का लक्षण यह भी किया है कि भूमा में ही सुख है? उत्तर- प्राणों के रोकने से सुख है न कि प्राणों की चेष्टा से; इस कारण भूमा प्राणों से पृथक् है,, जिसमें प्राणों को रोकर जिस जगह समाधि लगाते है, वहीं सुख मिलता है। सुखरूप परमात्मा है। भूमा में प्राणों का रोना, आनन्द का साधन हो सकता है; परन्तु प्राण आनन्द-स्वरूप नहीं हैं। यदि प्राण आनन्दस्वरूप होते, तो कोई प्राणी दुःख न पाता। इस पर और युक्ति देते है कि परमात्मा ही भूमा अर्थात् आनन्द-स्वरूप है;