सूत्र :प्रकरणात् 1/3/6
सूत्र संख्या :6
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : पदार्थ- (प्रकरणात्) विषय से भी यह ही पाया जाता है।
व्याख्या :
भावार्थ- इस जगह प्रश्न यह है कि जिस एक के जानने से सबका ज्ञान हो जाये परंतु जीव और प्रकृति के जाननें से सबका ज्ञान नहीं हो सकता; इस कारण न तो जीव लिया जा सकता है न प्रकृति।
प्रश्न- जिस प्रकार सुवर्ण के बने हुए सब आभूषणों का ज्ञान सुवर्ण के जानने से हो जाता है, ऐसे ही प्रकृति के जानने से सब जगत् के पदार्थों का ज्ञान हो जावेगा।
उत्तर- यहाँ पक्ष यह है कि कुल वस्तुओं का ज्ञान हो; परन्तु प्रकृति के जानने के कार्य (मालूम) वस्तुओं का ज्ञान तो हो जावेगा; परन्तु कारण अर्थात् जीवात्मा और परमात्मा का ज्ञान नहीं होगा। जिस प्रकार सुवर्ण के जानने से उसके कार्य का ज्ञान हो सकता है; परन्तु बनानेवाला सुवर्णकार का ज्ञान नहीं। निदान प्रकरण से स्पष्ट सिद्ध है कि केवल ब्रह्मा के जानने से ही ज्ञान होता है; इस कारण ब्रह्माही लेना अचित है।
प्रश्न- केवल ब्रह्मा के जानने से सबका ज्ञान किस प्रकार हो जावेगा?
उत्तर- इस शरीर में पाँच कोष हैं और आत्मा के भीतर ब्रह्माहै। प्रकृति से ब्रह्मा सूक्ष्म है; इस कारण प्रकृति के भीतर ब्रह्मा है और जीव से भी ब्रह्मा सूक्ष्म है; इस कारण जीव के भीतरी ब्रह्मा है जैसे -किसी गृह के भीतर कोई वस्तु हो, तो उसके देखने के लिये जो जायगा, उसको प्रथम गृह का ज्ञान होगा; पुनः भीतर पदार्थ का। इस प्रकार ब्रह्मा को जानने के लिये तीनों शरीर, पाँच कोष, जीवात्मादि सबसे गुजरना होगा। इस प्रकार सबका ज्ञान हो जावेगा। इस पर और युक्ति देते हैं।