सूत्र :द्युभ्वाद्यायतनं स्वशब्दात् 1/3/1
सूत्र संख्या :1
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : पदार्थ- (द्योम्नादि) देवलोक और भूलोक आदि का (आयतनम्) रहने का स्थान परमात्मा है (स्वशब्दात्) आत्मा शब्द होने से।
व्याख्या :
भावार्थ- जिन श्रुतियों में देवलोक, भूलोक, अंतरिक्ष, मन और प्राण इन्द्रियों के भीतर माला के मनकों में सूत्र के समान ओत-प्रोत लिखित है, वहाँ परमात्मा ही उनके आधार हैं। जिस प्रकार आकाश गृह के भीतर रहनेवाली वस्तुओं के भीतर-बाहर प्रतीत होता है, ऐसे ही परमात्मा सब मनुष्यों के भीतर-बाहर है।
प्रश्न- जबकि वहाँ रहने का स्थान लिखित है और उसको अमृत का पुल बतलाया है, इस कारण परमात्मा नहीं हो सकता; क्योंकि पुल सान्त होता है। इस कारण कोई दूसरी वस्तु लेनी चाहिए।
उत्तर- दूसरी कौन-सी वस्तु उन सबका वस्तु का आधार है? यदि कहो प्रकृति, तो हो नहीं सकती, क्योंकि वहाँ आत्मा शब्द बतलाया है और यदि कहो जीवात्मा, तो वह भी नहीं हो सकता; क्योंकि सान्त होने से इतने बड़े मनुष्यों में जिसमें असंख्य जीव रहते हैं, अकेला कैसे रह सकता है? वहाँ लेख है कि उस ऐ को मैं जानूँ। इस कारण सबमें रहने योग्य एक आत्मा परमात्मा ही है।, उसीको सबका उदाहरण कह सुनाते हैं।
प्रश्न- यदि जीव जाति को एक मानकर लिखा हो, जैसी कि साधारणतया जाति में अर्थात् जीव के कारण शब्द ‘एक’ का प्रयोग होता है, तो जीवात्मा शांत भी और उनमें रहने योग्य भी है?
उत्तर- शब्द से मनुष्य लोगे, तो जाननेवाला कौन रहेगा? इस कारण परमात्मा ही लेना उचित है और पुल की उपमा से शांत होने के कारण नहीं; किंतु पार करने के लिये दी है; इस कारण उपमा जिस पक्ष में दी जाती है, उसका वह ही अर्थ लेना चाहिए। इसके लिये और युक्ति देते हैं।