सूत्र :अनुस्मृतेर् बादरिः 1/2/30
सूत्र संख्या :30
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : पदार्थ- (अनुस्मृतेः) अनुस्मृरण के लिये (वादिरिः) पाराशर जी मानते हैं।
व्याख्या :
भावार्थ- पाराशरजी का मत है कि जिन श्रुतियों में परमात्मा को एक देश में बताया है, जैसे-हृदयकाश में दश अंगुल व नेत्र के भीतर, यह सब मनुस्मृति अर्थात् परमात्मा की सूक्ष्मता के विचार के कारण कहा गया है; क्योंकि यदि परमात्मा के भीतर कोई मान होता, तो प्रकट किया जाता; परंतु परमात्मा का सबसे बड़ा होने से कोई मान नहीं। उसकी लबाई, चौड़ाई, वनज आदि का मान नहीं हो सकता है। नेत्र और मन के अंदर बतलाने से उसकी सूक्ष्मता और ब्रह्याण्ड से बड़ा बतलाने से व्यापक होने का वर्णन किया है। उस पर जैमिनि आचार्य कहते हैं-