सूत्र :अभिव्यक्तेर् इत्य् आश्मरथ्यः 1/2/29
सूत्र संख्या :29
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : पदार्थ- (अभिव्यक्तेः) प्रकट के लिये (इति) यह सान्त स्थान (आश्मरथ्यः) आश्मरथ्य आचार्य मानते हैं।
व्याख्या :
भावार्थ- आश्मरथ्य आचार्य कहते हैं कि श्रुतियों ने जो अधिक स्थान पर ब्रह्मा को एकदेशी अर्थात् सान्त बताया है, वह केवल इजहार के कारण बतलाया है। जैसे- हृदय में इस कारण बतलाया है कि वह वहाँ देखा जा सकता है और स्थान मन के दर्पण के संबंध न होने से उसे नहीं देख सकते,जिस प्रकार एक कवि कहता है कि-
‘‘हर वर्ग सब्ज बर होशियार।
दफ्तरीस्त अज मारफते किर्दगाद।।’’
अर्थात् संसार का प्रत्येक हरा पत्ता एक दफ्तर है, जिससे परमात्मा का ज्ञान हो सकता है। श्रुतियों ने भी प्रत्येक वस्तु के भीतर, ब्रह्मा की विद्यमानता को दिखलाकर, उन मनुष्यों की भूल को दूर किया है कि जो परमात्मा को सान्त मानकर, चतुर्थ आकाश व सातवें आकाश व सोहलवें लोक में ले गये हैं। प्रत्येक वस्तु के भीतर ब्रह्मा होने से जीवात्मा के भीतर भी ब्रह्मा ही है, इस कारण भीतर रहनेवाले ब्रह्मा की खोज संसार में करना मूर्खता है। उस मूर्खता को दूर करने के लिये श्रुतियों ने प्रत्येक स्थान पर ब्रह्मा का वर्णन किया है, जिससे साधारण विद्वान् मनुष्य के भीतर से यह विचार दूर हो जावे कि परमात्मा के जानने के लिये किसी बाहर के साधन की आवश्यकता है। किन्तु दिखया यह है कि परमात्मा विद्यमान है। उसके संबंध में बादरि आचार्य अर्थात् व्यासजी के पिता यह कहते हैं-