सूत्र :संपत्तेर् इति जैमिनिस् तथा हि दर्शयति 1/2/31
सूत्र संख्या :31
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : पदार्थ- (सम्पत्तेः) अजमत व ऐश्वर्य कारण (इति) यह (जैमिनिः) मानते हैं (तथा) ही (हि) निश्चय करके (दर्शयति) दिखलाते हैं।
व्याख्या :
भावार्थ- जैमिनि आचार्य का इस विषय पर कि श्रुतियों ने परमात्मा को एक देश में शांत क्यों बतलाया है, यह विचार है कि जिन वस्तुओं में परमात्मा को बतलाया है, उनसे परमात्मा का ऐश्वर्य प्रकट किया है। अर्थात् जितने पदार्थ परमात्मा ने रचे हैं, प्रत्येक के भीतर किसी न किसी स्थान पर, परमात्मा को बतलाकर सब वस्तुओं के समूह को परमात्मा को ऐश्वर्य अर्थात् सम्पत्ति प्रकाश किया है। जैसे कोई कहे कि श्रीरामचन्द्रजी आयोध्या के राता थे; परन्तु बताये काशी और पटने के राजा थे। इस प्रकार जितने नगरों के वह राजा थे, पृथक्-पृथक् स्थान पर प्रकट कर दे। यद्यपि पृथक्-पृथक् देखने से उनके राजा का एक-एक नगर में होना प्रकट होगा; परन्तु सब स्थानों के संयोग से सब स्थान पर, उनकी उपथ्सथति का वर्णन हो जाता है।