सूत्र :अत एव न देवता भूतं च 1/2/27
सूत्र संख्या :27
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : पदार्थ- (अतः) इसलिये (एव) भी (न) नहीं (देवता) अभिमानी देवता (भूतश्च) अग्नि परमाणु।
व्याख्या :
भावार्थ- इस कारण न तो अग्नि का अभिमानी देवता कोई है; वैश्वानर शब्द से स्वीकार किया जा सकता है और नहीं अग्नि भूत कह सकते हैं; किंतु स्पष्ट ढंग पर विषय के देखने से वैश्वानर शब्द र्से अर्थ परमात्मा ही लेना पड़ता है। युक्तियों से प्रथ्साम देख चुके हैं कि केवल उष्ण और प्रकाशमान अग्नि का सूर्य से ऊपरवाला आकाश मस्तक हो सकता है; न अग्नि का मुख अग्नि हो सकता है, न अग्नि के नेत्र सूर्य अथवा चन्द्र हो सकते हैं, न पृथ्वी उसके चरण हो सकती है; निदान वैश्वानर शब्द के अर्थ ब्रह्मा ही लेने विषय के अनुकूल उस स्थान पर उचित हो सकते हैं। इस पर जैमिनि आचार्य की सम्मति प्रकाश करते हैं।