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वेदान्त-दर्शन-COLLECTION OF KNOWLEDGE
DARSHAN
दर्शन शास्त्र : वेदान्त-दर्शन
 
Language

Darshan

Adhya

Shlok

सूत्र :वैश्वानरः साधारणशब्दविशेषात् 1/2/24
सूत्र संख्या :24

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती

अर्थ : पदार्थ- (वैश्वानरः) परमात्मा का ही नाम है (साधारणशब्द विशेषात); क्योंकि साधारण (आम) शब्द से तो उसका अग्नि आदि अर्थ है; यहाँ विशेष अर्थ दिये जाते हैं।

व्याख्या :
भावार्थ- साधारण शब्दों में तो वैश्वानर्र अिग्न का नाम है। जो पेट में भोजन को पचाती है; उसको वैश्वानर भी कहते हैं। बहुत-से स्थानों पर जीवात्मा का वर्णन करते हुए भी आचार्यों ने वैश्वानर नाम से जीव को उच्चारण किया है; परन्तु वेदान्तशास्त्र में जहाँ उपासान प्रकरण में वैश्वानर शब्द आया है, वहाँ साधारण शब्द नहीं; किन्तु मुख्य शब्द है; इस कारण उसका अर्थ पेट की अग्नि वा जीवात्मा लेना उचित नहीं; किन्तु परमात्मा ही लेना उचित है। प्रश्न- क्या शीत से दुःखित मनुष्य के लिये अग्नि उपास्य नहीं; क्योंकि अग्नि के संयोग से शीत नाश हो जाता है? उत्तर- यद्यपि शीत अग्नि से भी नाश हो जाता है; परन्तु वह बस्त्र से भी दूर हो सकता है; इस कारण उपासना-प्रकरण में वैश्वानर शब्द केवल परमात्मा का ही नाम है। प्रश्न- इस स्थान पर वैश्वानर शब्द में क्या विशेषता है; जिसके कारण उसका अर्थ परमात्मा ही लिया है? उत्तर- अग्नि, जीवात्मा और परमात्मा तीनों के लिये यह शब्द आता है; परन्तु यहाँ यह दिखाया है कि उस आत्मा वैश्वानर का स्वरूप ही तेज अर्थात् अग्नि है। जब अग्नि उसका शिर बताया, तो वह अग्नि किस प्रकार हो सकती है; क्योंकि अग्नि का शिर अग्नि नहीं हो सकती, न जीवात्मा के ही शिर को कहीं अग्नि बताया है। इस विशेषता के वर्णन से जिस परमात्मा को अलंकार में दिखाते हुए अग्नि उसका शिर बताया है, वही परमात्मा उस शब्द के कथन से अर्थ है; क्योंकि उस जगह एक और भी विशेषता दिखलाई है। वह यह है- वहाँ प्रश्न है कौचन हमारा आत्मा है और वह ब्रह्मा का है। इस समय पर वैश्वानर के उत्तर में आने से भी वह ब्रह्मा की लिंग है। इस पर और युक्ति देते हैं।