DARSHAN
दर्शन शास्त्र : वेदान्त-दर्शन
 
Language

Darshan

Adhya

Shlok

सूत्र :अन्तर्याम्यधिदैवाधिलोकादिषु तद्धर्मव्यपदेशात् 1/2/18
सूत्र संख्या :18

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती

अर्थ : पदार्थ- (अन्तर्यामी) भीतर रहकर प्रबन्ध करने वाला (अधि) आधार (देव) सूर्य चन्द्र (आदिषु) आदि में (तत्) उसका (धर्म) गुण कर्म स्वभाव (व्यपदेशात्) बताया जाने से।

व्याख्या :
भावार्थ- अन्तर्यामी अथवा अन्तःकरण में रहकर प्रबन्ध करने वाला और सबके भीतर रहनेवाला परमात्मा ही को बतलाया है; इसलिये आँख के भीतर जो पुरूष है, उससे भी आशय परमात्मा ही को लेना उचित है। परमात्मा के सिवाय भीतर रहकर और कोई प्रबन्ध नहीं कर सकता; क्योंकि प्रथम तो सबसे सूक्ष्म है, जो सबके घट में रहनेवाला कहला सके और न कोई विशेष ज्ञानवाला अर्थात् सर्वज्ञ है, प्रबन्ध कर सके; इस कारण घट-घट में रहकर प्रबन्ध करनेवाला परमात्मा ही है। यद्यपि जीवात्मा भी आकाश से सूक्ष्म है; परन्तु वह आकाश के भीतर रहकर प्रबन्ध नहीं कर सकता; क्योंकि शान्त पदार्थ की शक्ति अनन्त नहीं हो सकती; इस कारण यह धर्म परमात्मा के ही हैं। प्रश्न- किस प्रकार स्वीकार किया जावे कि सबके भीतर परमात्मा है? उत्तर- जिस प्रकार, शरीर के भीतर जब जीव रहता है, तब तो सब कार्य प्रबन्ध से होते हैं अर्थात् जीव जिस शब्द को चिह्ना से निकालता है, वही शब्द जीभ से निकालता है, जिस ओर पाँव को चललाता है, उसी ओर चलता है; जब जीव नहीं होता, तो शरीर कोई कर्म नहीं करता; क्योंकि वह जड़ प्रकृति का बना हुआ है। इसी प्रकार जड़ प्रकृति के लेते हुए सब अणु और वस्तुयें, जो नियम के भीतर कर्म कर रहीं हैं, स्पष्ट ढंग पर प्रकट कर रही हैं कि उनको प्रबन्ध में रखनेवाला भी अनन्त ही होना चाहिए; अतः वह सबके भीतर रहकर कर्म करनेवाला अनन्त परमात्मा ही है। प्रश्न- प्रत्येक पृथ्वी आदि गोले में एक-एक देवता रहता है और वह ही उसका प्रबन्ध करता है। सबके भीतर एक ब्रह्मा के मानने की क्या आवशयकता है? उत्तर- चेतन दो प्रकार के हैं-एक जीव, दूसरे ब्रह्मा। वह देवता भी उनके भीतर दो ही होंगे। यदि दो मानोगे, तो वह आकाश के भीतर रह नहीं सकता। शान्त होने से यदि उस देवता को ब्रह्मा मानोगे, तो पक्ष सिद्ध ही है। प्रश्न- यदि यह मान लिया जावे कि सूर्य और पृथ्वी के भीतर जो देवता है, वह न तो जीव है, न ब्रह्मा; किन्तु उन्ही भूतों को एक सूक्ष्म भाग है? उत्तर- यदि उसका भाग मानों तो जड़ होने से प्रबन्ध करने का प्रवाह-दोष होवेगा। उस जड़ पृथ्वी को हरकत देने के कारण किसी सूक्ष्म की आवश्यकता है? यदि वह भी जड़ है, तो उसको हरकत देने के लिये उससे सूक्ष्म चाहिए; यदि वह भी है, तो उससे भी सूक्ष्म उसको हरकत देनेवाला होगा, जिसका कभी अन्त नहीं होगा। इस कारण अन्तर्यामी सर्व-व्यापक भीतर रहकर प्रबन्ध करनेवाला केवल परमात्मा ही है। प्रश्न- सांख्य-शास्त्र में जिस प्रकृति को बतलाया है, उसका यह धर्म है कि वह सबसे सूक्ष्म है?

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