सूत्र :विशेषणाच् च 1/2/12
सूत्र संख्या :12
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : पदार्थ- (विशेषणात्) विशेषता (च) से।
व्याख्या :
अर्थ- जीवात्मा को शरीर के रथ पर1 सवार होकर स्थान पर पहुँचनेवाला बताया गया और परमात्मा को स्थान श्रुतियों ने बताया है; इस कारण स्पष्ट प्रकट है कि जीव और ब्रह्मा पृथक्-पृथक् हैं। स्थान और बटोही दोनों एक नहीं हुआ करते। यह विशेषता श्रुतियों में दिखाई गई है कि वह जीवात्मा परमात्मा को प्राप्त होता है। किसी मंत्र में जीवात्मा और परमात्मा को एक ही शरीर में रहनेवाला बतलाकर, जीव को सुख-दुःख भोगनेवाला और परमात्मा को केवल देखनेवाला प्रकट किया गया है। और किसी में जीवात्मा को देखनेवाला और ब्रह्मा को दृश्य बतलाया गया है; इस भाँति के बहुत विशेषता के शब्द देने से जीव और ब्रह्मा दोनों पृथक्-पृथक् सिद्ध होते हैं।
प्रश्न- वेद ने बताया है कि जो मनुष्य सब भूतो को एक जानता है कि यह सर्वात्मा ही हो गया, उस एकता के देखनेवाले को शोक और मोह किस प्रकार उत्पन्न हो सकता है? इससे स्पष्ट है कि जीव ब्रह्मा से बने हैं; वह ब्रह्मा से पृथक् किस प्रकार हो सकते हैं?
उत्तर- यहाँ आत्मा से अर्थ जीवात्मा का है, अर्थात् जो मनुष्य ऐसा जानता है कि सर्व योनियों में एक ही जीव रहते हैं, कोई बड़ा कोई छोटा नहीं, उसें भय और शोक नही होता। यह सब जानते हैं कि पवित्र जन्म माननेवालों का धर्म यह ही है।
प्रश्न- श्रुति ने जो यह बतलाया है कि चक्षु में जो पुरूष है, क्या वह जीवात्मा है वा आत्मा का आभास है?