सूत्र :अन्तर उपपत्तेः 1/2/13
सूत्र संख्या :13
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : पदार्थ- (अन्तरः) परमात्मा है (उपपत्तेः) सिद्ध होने से।
व्याख्या :
भावार्थ- पुरूष निराकार है; इस कारण उसका आभास अर्थात् प्रतिबिम्ब तो हो नहीं सकता। इन्द्रियों का विलोना जिससे इन्द्रिय सहायता परती है, वह भी नहीं हो सकता; क्योंकि इन्द्रिय से बड़ा है; निदान पुरूष जो भीतर है, वह परमात्मा है
प्रश्न- पुरूष का आभास दिखाई देता है, यह बात सबसे प्रसिद्ध है; इस कारण नेत्र में जो पुरूष है, वह आभास रूप मानना चाहिए वह सूर्य जो चक्षु को देखता है, उसी का आभास लेना चाहिए, वह जीवात्मा हो सकता है; क्योंकि श्रुतियों ने बहुधा बताया है और एक स्थान पर बनाने से परमात्मा नहीं हो सकता है?
उत्तर- उस स्थान पर जो गुण बताये गये हैं, वह सिवाय परमात्मा में नहीं पाये जाते है, क्योंकि यहाँ पर अमृतमय से मुबर्रा सब बुराइयों से पवित्र अथवा सब पापों का नाश करनेवाला आदि बतलाया है।
प्रश्न- आँख के भीतर क्यों बतलाया?
उत्तर- नेत्र ऐसा स्थान है, जो थोड़े-से मैल से मलिन हो जाता है। वह सदैव ही रहता है। अतएव जिस स्थान पर मैल होगा; वहाँ परमात्मा का दर्शन नहीं हो सकता।
प्रश्न- आकाश के समान सर्व-व्यापक ब्रह्मा का एक स्थान पर क्यों उपदेश किया?