सूत्र :अत्ता चराचरग्रहणात् 1/2/9
सूत्र संख्या :9
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : पदार्थ- (अत्ता) परमात्मा का नाम खाने वाला है (चराचर ग्रहणात्) चेतन और जड़ व स्थावर व जंगम जगत् को ग्रहण करने से।
व्याख्या :
भावार्थ- इस स्थान पर आत्मा अर्थात् खानेवाला परमात्मा का ही नाम है; क्योंकि वह जगत् को अपने भीतर ग्रहण करता अर्थात् प्रलय करता है।
प्रश्न- श्रुतियों में तो अग्नि को भक्षण करनेवाला कहाहै; इस कारण इस जगह अग्नि अर्थ करना चाहिए; क्योंकि परमात्मा के लिये श्रुति ने कहा है कि वह न खाता हुआ देखता है। जीव को लेना उचित है, क्योंकि श्रुति ने बतलाया है कि संसार के फलों को जीवात्मा भोगता है।
उत्तर- जीव और अग्नि सबको भक्षण नहीं करते; क्योंकि जीव शांत होने से सबको नहीं खा सकता और न अग्नि अपने से सूक्ष्म वायु आदि द्रव्यों को खा सकती है; अस कारण सबको नाश करनेवाला परमात्मा ही ऊपर की कठोपनिषद् की श्रुति में लेना चाहिए।
प्रश्न- क्या अग्नि से कोई सूक्ष्म भूत भी है? सब मनुष्य तो आकाश को छोड़कर, शेष सबसे सूक्ष्म अग्नि को मानते हैं; क्योंकि इसमें बोझ नहीं?
उत्तर- यह उचित नहीं; क्योंकि अग्नि में रूप और स्पर्श दो गुण हैं और वायु में केवल स्पर्श गुण है। इस कारण वायु अग्नि से सूक्ष्म है; परंतु बोझ पृथ्वी के आकर्षण से होता है। वायु पर पृथ्वी का प्रभाव पड़ता है और अग्नि पर रूप विरूद्ध होने से असर नहीं पड़ता। इस कारण वायु में बोझ ज्ञात होता है; अग्नि में नहीं।
प्रश्न- जबकि अग्नि में गर्मी है, वह वायु में प्रविष्ट होकर वायु को गर्म कर देती है और वह निर्विवाद सिद्धान्त है कि सूक्ष्म पदार्थ के गुण स्थूल में आते हैं और सूक्ष्म के गुण स्थूल में आते हैं और सूक्ष्म के गुण स्थूल में नहीं आते; निदान वायु से अग्नि सूक्ष्म है।
उत्तर- वायु में अग्नि का गुण नहीं आता; किंतु वह ले जानेवाली होने से जब पृथ्वी और अग्नि के परमाणुओं को ले जाती है, हमें शीत और उष्ण ज्ञान होती है। अतः अग्नि जल से स्थूल नहीं है।
प्रश्न- श्रुति में तो केवल ब्रह्मा क्षेत्र है, भात अर्थात् भोजन बताया है। इससे चराचर का ग्रहण किस प्रकार हो सकता है?
उत्तर- मृत्यु की चटनी बतलाने से ब्रह्माण और क्षत्रिय केवल उपलक्षण हैं और अर्थ कुल विकारवालों से है।
प्रश्न- पुनः श्रुतियों में विरोध नहीं आयेगा। एक श्रुति तो कहती है कि वह नहीं खाता, केवल देखता है; दूसरी कहती है कि वह खाता है?
उत्तर- न खाने का तात्पर्य यह कि वह कर्मफल अर्थात् सुख-दुःख नहीं भोगता; परन्तु जगत् के प्रलय करने का सबने खंडन नहीं किया।
प्रश्न- इस स्थान पर परमात्मा लेने में क्या युक्ति है?