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वेदान्त-दर्शन-COLLECTION OF KNOWLEDGE
DARSHAN
दर्शन शास्त्र : वेदान्त-दर्शन
 
Language

Darshan

Adhya

Shlok

सूत्र :गुहां प्रविष्टाव् आत्मानौ हि तद्दर्शनात् 1/2/11
सूत्र संख्या :11

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती

अर्थ : पदार्थ- (गुहां प्रविश्टौ) गुहा अर्थात् गहरी गाढ़ागार में (आत्मानौ) जीवात्मा अथवा परमात्मा (हि) निश्चय (तत्) उस जीवात्मा के आनन्द (दर्शनात्) दर्शन करने से।

व्याख्या :
भावार्थ- अग्नि आदि भूत और जगत् के पदार्थ सब प्रत्यक्ष हैं उनको जानने के कारण अधिक विचार की आवश्यकता नहीं, इसलिये उनको प्रत्येक मनुष्य जान सकता है; परंतु जीवात्मा और परमात्मा को देखने के कारण अपने जब तक अपने भीतर प्रवेश न हो, तब तक नहीं जान सकते; इस कारण अपने भीतर प्रवेश होना अति कठिन है। निदान, जीव और ब्रह्मा का जानता दुर्लभ स्वीकृत किया गया है। प्रश्न- अपने भीतर प्रवेश होना तो किसी प्रकार नहीं बन सकता; क्योंकि उसमें आत्माश्रयी दोष है? उत्तर- जिस प्रकार नेत्र में सुर्मा होता है; चक्षु तक बाहर की ओर देखता है, तब तक उसको अपने सुर्मा का दर्शन नहीं होता; जब सामने दर्पण रखकर चक्षु की वृत्ति बाहर जाने से रूककर भीतर की ओर लौटती है, तब नेत्र और सुर्मा का ज्ञान होता है; ऐसे ही जब आत्मा अपनी बुद्धिवृत्ति को शुद्ध मन के दर्पण से बाहर की ओर जानने से रोककर, अपने स्वरूप में आनन्द गुण को मालूम करता है; तब उसको परमात्मा और अपने स्वरूप का ज्ञान होता है और तभी वह दुःखों से तर जाता है। प्रश्न- देखनेवाला जीवात्मा, परमात्मा, बुद्धि अथवा मन है? उत्तर- देखनेवाला जीवात्मा है; क्योंकि परमात्मा का ज्ञान स्वाभाविक है और देखने से तात्पर्य नैमित्तिक ज्ञान प्राप्त होता है; जो परमात्मा में असम्भव है; बुद्धि से जानने का साधन नहींद्ध किंतु ज्ञान है। इस कारण देखने वाला जीवात्मा ही लेना चाहिए। प्रश्न- क्या परमात्मा में नैमित्तिक ज्ञान नहीं आ सकता? उत्तर- जबकि परमात्मा पूर्व ही से सर्वज्ञ है, तो बढ़ ही कैसे सकता है। अल्पज्ञ जीवात्मा के ज्ञान में ता न्युनता अथवा अधिकता नहीं हो सकती। प्रश्न- ब्रह्मा तो सर्व-व्यापक है उसके देखने के कारण एक स्थान का उद्देश्य क्यों किया; किया; उसे जहाँ देख सकते हैं? उत्तर- निश्चय ब्रह्मा सर्व-व्यापक है; परंतु देखने का समय एक ही स्थान पर मिलता हैं; क्योंकि स्थूल वस्तु में सूक्ष्म पदार्थ प्रवेश हुआ, तो स्थूल का ही दर्शन होता है? इस कारण बाहर जगत् में ब्रह्मा प्रकृति में व्यापक है। प्रकृति ब्रह्मा सूक्ष्म और प्रकृति का ही दर्शन होता है, ब्रह्मा का नहीं; परन्तु जीवात्मा से ब्रह्मा सूक्ष्म और प्रकृति स्थूल है; इस कारण जीव के भीतर केवल ब्रह्मा ही रह सकता है; प्रकृति नहीं। अतः वहीं ब्रह्मा शुद्ध का दर्शन होगा। दूसरी बात यह भी कि जहाँ दो हों, वहाँ सन्देहात्मक ज्ञान होता है; जहाँ अकेला ही हो, तो निश्चयात्मक ज्ञान होता है; इस कारण ब्रह्मा का सन्देहात्मक ज्ञान होता है; और भीतर देखनेवालों की निश्चात्मक ज्ञान हो जाता हैं; इस कारण ब्रह्मा का निश्चय होने की एक जगह है। प्रश्न- तुम किस प्रकार जीवात्मा और परमात्मा पृथक् दो मानते हो?